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कैंडी क्रश / सुप्रसिद्ध लेखक व कवि रवि ऋषि की कलम से

कैंडी क्रश / सुप्रसिद्ध लेखक व कवि रवि ऋषि की कलम से

बच्चे शाम को ही कहीँ बाहर चले गये थे । हल्का अँधेरा घिरने लगा तो मैं बाहर बाल्कोनी में पड़े दीवान पर आकर पसर गया । यहाँ लेटना हमेशा अच्छा लगता है । एक तो इस छोटे से फ्लैट में खुलेपन का एहसास होता है । दूसरे सामने आसमान का एक टूकड़ा याद दिलाता है कि आकाश में चाँद और तारे भी हैं । तभी पत्नी भी कुर्सी खींच कर सिरहाने ही बैठ गई । मुझे याद आया शुरू में हम जब ऐसे एकांत में होते थे तो पत्नी अक्सर सिरहाने बैठी बालों में उँगलियाँ फिराया करती थी । आज भी दिल कुछ ऐसी ही चाहत कर रहा था । हालाँकि अब सर पर बाल गिनती के ही रह गये थे । लेकिन हाथ में उँगलियाँ भी तो पाँच ही होती हैं और हम ये दावे के साथ कह सकते थे कि हमारे सर पर पाँच से ज़्यादा बाल तो थे ही । या फिर अल्पसंख्यक बालों की उपेक्षा भी की जाये तो माथे पर हाथ तो फिराया ही जा सकता था , जो अब एक बड़े मैदान जितना फैलाव लिये था । आँखें बंद किए उस एहसास का इंतज़ार करते थे । पुराने दिनो को याद कर धड़कने तेज़ हुई जाती थीं । पलकें मूंदकर जब काफी देर के बाद भी जब बालों में जूँ तक नहीँ रेंगी तो हमने सर घुमा कर पत्नी की ओर देखा । वे बड़ी ही तन्मयता से आई पैड पर कैंडी क्रश खेल रही थीं । हमने वितृष्णा से अपने ही माथे पर हाथ मारा और मुँह मोड़ कर बाहर आकाश को निहारने लगे । तभी आकाश से एक तारा टूट कर गिरा । हमारे मुँह से सहसा निकला .
हे भगवान ! आप भी कैंडी क्रश .
रवि ऋषि

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