Uncategorized

देव स्थानों को बदनाम करते पंडित और पण्डे — नरेश चन्द्र उनियाल

 

उत्तराखण्ड में सरकारी विद्यालयों में 27 मई से ग्रीष्मावकाश घोषित हुए तो फ़ुरसत के 35 दिन नसीब हो गये। घर में आकर परिवार के साथ पर्यटन का कार्यक्रम तय किया गया। अब प्रश्न था कि कहाँ जाया जाय? मैदानों की तरफ़ तो झुलसा देने वाली गर्मी ने जाने से रोक दिया, तो कहीं पहाड़ों पर ही जाने का निश्चय कर लिया गया। आख़िरकार उत्तराखण्ड का पाँचवाँ धाम माने जाने वाले टिहरी गढ़वाल जिले के प्रतापनगर प्रखण्ड में स्थित सेम मुख़ीम नागराजा ईष्टदेव के चरणों में जाने का कार्यक्रम तय पाया गया।
30 मई 2023 को प्रातः निकलने का कार्यक्रम बना। देहरादून से ऋषिकेश- नरेन्द्रनगर -चम्बा- टिहरी झील पर बना डोबरा चाँठी पुल से होते हुए लम्बगाँव पहुँचे। लम्बगाँव के बारे में बहुत सुना था ..पहली बार देखने का सौभाग्य मिला। प्राकृतिक दृष्टि से बेहद खूबसूरत यह क़स्बा लम्बगाँव, नाम को तो नगर पालिका क्षेत्र है, किन्तु संसाधनों के नाम पर शून्य। संकरी गली सी सड़क, भयंकर जाम की स्थिति और लोगों की भारी भीड़। कभी दिन बहुरेंगे इस जगह के ? पता नहीं …
ख़ैर ..लम्बगाँव से लगभग 35 किमी दूर, सड़क से डेढ़ किमी पैदल चढ़ाई चढ़कर, ऊँचाई पर सुरम्य, मनहर जंगलों के बीच स्थित नागराजा के दरबार में पहुँचकर सारी थकान मानों उड़ सी गई। चूँकि शाम के 5 बज गये थे तो अब मन्दिर प्रांगण में 15-20 दर्शनार्थी ही रह गये थे। हालाँकि स्थानीय लोगों ने बताया कि लगभग दो ढाई सौ लोग प्रतिदिन दर्शनार्थ मन्दिर में पहुँच रहे हैं।
हम अपने साथ ले गये प्रसाद को लेकर मुख्य गर्भगृह में पहुँचे। पण्डित जी (रावल ) यूँ मुस्कुराकर देख रहे थे जैसे कह रहे हों कि आया मुर्ग़ा फँसने में। उन्होंने हमसे प्रसाद लेकर संकल्प आदि करवा कर लगभग 5 मिनट के लिये हमारी पूजा अर्चना की। हमने श्रद्धानवत् होकर 250/- रुपये पंडित जी को दक्षिणा दी तो उन्होंने वे पैसे इतनी बेरुख़ी से झटके कि हम क्षण भर जड़वत् से हो गये। “यह क्या दे रहे आप, भीख दे रहे हैं क्या हमको ? यह तो बहुत कम है।”
मेरे साथ पत्नी भी थीं तो पत्नी जी ने कहा चलो छोड़ो 500/- दे दो। तो रावल जी बोल पड़े अजी क्या 500 .. पूरे 2100/- रुपये दीजिये। ख़ैर लड़ते झगड़ते आख़िरकार 1100/- रुपये हमें देने ही पड़े। उसके बाद बग़ल में गंगू रमोलाराजा के परिवार जनों की मूर्ति के सामने बैठा पंडित भी 500/-से कम पर राज़ी नहीं हुआ, यद्यपि उसे हमने डेढ़ सौ रुपये ही दिये। फिर दो पण्डे हवन कुण्ड के गिर्द बैठे हुए थे, जो हमसे ज़बरदस्ती हवन कराने को कह रहे थे …बोलते थे कि बिना हवन किए यात्रा पूरी नहीं होती। सो दो मिनट का हवन भी करवाया। वे भी 1100/- माँगने लगे। आख़िरकार 500- में मामला टला।
दर्शन के बाद मन्दिर से नीचे उतरते हुए मैं इन पंडितों की ज़ोर ज़बरदस्ती पर कुढ़ रहा था। (और कर भी क्या सकता था)। मैंने हिसाब लगाया कि यदि प्रतिदिन सौ लोग भी मंदिर आते होगे और ये पंडी जी हर व्यक्ति से 1000/- रुपये भी लेते होगे तो 100000/- (एक लाख) रुपए प्रतिदिन की कमाई सीधे एक पण्डित की जेब में बिना टैक्स के चली गई।अर्थात् 30 से 3100000/- (तीस से इक्त्तीस लाख) प्रति माह और 36000000/- (तीन करोड़ साठ लाख प्रति वर्ष ) की आय बिना टैक्स दिये हुए सीधे सीधे एक पंडे की जेब में जा रही है।
मन्दिर से नीचे उतरकर ग्राम प्रधान अनिल नौटियाल जी की दुकान/होटल है। वहाँ पर बैठे ..उनसे इस संबंध में चर्चा-परिचर्चा की तो वे बोले कि हम इस संबंध में कुछ नहीं कर सकते। चूँकि मन्दिर किसी संस्था/समिति के अधीन नहीं है, अतः लेन देन का कोई भी हिसाब नहीं रखा जाता। जो भी चढ़ावा, दक्षिणा होती है वह सीधे सीधे इन पण्डे/पंडितों की जेब में जाता है।
हमें चढ़ावा उनकी जेब में जाने का दुख नहीं है …दुख इस बात का है कि वे भक्त लोगों से जबरन पैसे लेते हैं।भक्तों की श्रद्धा का कोई मान नहीं रखते। अगर ऐसे ही चलता रहा तो फिर कोई ग़रीब/ कमजोर व्यक्ति तो कभी भी देवदर्शन नहीं कर पायेगा और भक्तों के मन में श्रद्धाभाव ख़त्म हो जायेगा।
यदि मेरी बात किसी तरह से सरकार या समर्थ संस्था/ ट्रस्ट तक पहुँचती है तो सेम मुख़ीम का प्रसिद्ध धाम भीमन्दिर समिति की निगरानी में आना ही चाहिये। अन्यथा जनता लुटती रहेगी और लोगों के मन में श्रद्धाभाव निरन्तर ख़त्म होता चला जायेगा।
मैं तो यही सोच सकता हूँ कि यदि उस ईष्ट में शक्ति होगी तो वही उन पण्डों से वसूली कर लेगा और उनका सही से आय आगणन कर उनसे टैक्स भी वसूल कर लेगा।

[ 2 ]

ऐसा ही हमारे साथ एक बार हरिद्वार में भी हुआ। चचेरी बहिन के पति की अकाल मृत्यु हुई।भांजा तब नौ दस साल का रहा होगा। उसको लेकर हरिद्वार जाने की ड्यूटी (अन्य भाई बन्धुओं के साथ) मेरी भी लगी। कार्यक्रम बना कि हरिद्वार में सब पिण्डदान तेरहवीं, बरसी सब निपटा लेंगे। घाट पर पहुँचे तो चारों तरफ़ से पंडों ने घेर लिया। यह निर्णय करने के लिये कि ये लोग किस पंडे की यजमानी क्षेत्र से आये हुए हैं, उन्होंने हमसे प्रश्नों की बौछार कर दी ..
कहाँ से आये हो ? किस पट्टी के निवासी हो आदि आदि। ख़ैर .. उन्होंने जब तय कर लिया कि उस पंडे के यजमान हैं तो वे पंडे (पंडित ) जी हमको लेकर घाट पर आये। कुछ सामग्री मँगवाई ..वहीं आस पास से गाय की व्यवस्था (गोदान के लिये) की गई। मुण्डन, तर्पण और पिण्डदान का कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। अब बारी दक्षिणा की आयी तो लड़ झगड़कर हमसे अच्छी ख़ासी रक़म हड़प ली। उस दिन उनकी मानसिकता को देखकर मुझे अत्यन्त क्रोध और रोना आया। उस पण्डित ने यह भी नहीं सोचा कि एक दस वर्ष का बच्चा और उसकी जॉबलेस विधवा माँ कहाँ से इतने पैसों का इन्तज़ाम करेगी। मानवता को इतना नीचे गिरते हुए उस दिन पहली बार देखा था।
यह आलेख उन लोगों के लिये लिख रहा हूँ, जो इन देव स्थानों पर जाने की सोच रहे हैं। उनसे अनुरोध है कि यदि आप वहाँ जा रहे हैं तो लुटने के लिये तैयार रहें और लुटने का पूरा इन्तज़ाम भी साथ लेकर जायें। अर्थात् अच्छी ख़ासी रक़म जेब में रखकर जायें।
क्या मेरे इस आलेख से किसी सरकार या संस्था के कानों में जूँ रेंगेगा ? या यह आवाज़ भी नक्कारख़ाने में तूती की आवाज़ ही सिद्ध होगी ? ईश्वर ही जानता है।
जय नागराजा देवता।

नरेश चन्द्र उनियाल,
पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!