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लड़की का दर्द – शादी के बाद ससुराल का जीवन // लेखक शेर बहादुर

 

रीमा के घर में आज खुशियों का माहौल था। ढोल की थाप, माँ की आँखों में छलकते आँसू, और रीमा के मन में अनगिनत सपने – शादी के बाद एक नए जीवन की उम्मीद। उसे विश्वास था कि उसका ससुराल भी मायके जैसा होगा, जहाँ उसे प्यार और अपनापन मिलेगा।

लेकिन जब वह ससुराल पहुँची, तो धीरे-धीरे सपनों की दुनिया बिखरने लगी। पहले कुछ दिन अच्छे थे, लेकिन फिर असली परीक्षा शुरू हुई। हर सुबह सूरज से पहले उठना, बिना थके पूरे घर के लिए काम करना, और हर किसी की उम्मीदों पर खरा उतरने की कोशिश करना उसकी दिनचर्या बन गई। छोटी-छोटी भूलें बड़े तानों में बदल जातीं, और उसकी इच्छाओं का कोई मोल नहीं था।

जब भी वह मायके फोन करती, माँ की आवाज़ में छिपी चिंता को महसूस कर सकती थी। लेकिन वह हमेशा यही कहती—”मैं खुश हूँ, माँ,” क्योंकि वह अपने दर्द को उनसे साझा नहीं करना चाहती थी।

एक दिन, जब वह बुखार से तप रही थी और फिर भी रसोई में काम कर रही थी, किसी ने ताना मारा – *”अगर आराम करना था, तो मायके में ही रहती!”* वह अंदर तक टूट गई। क्या शादी के बाद एक लड़की को सिर्फ दायित्व निभाने की मशीन समझा जाता है? क्या उसकी भावनाओं का कोई मोल नहीं?

लेकिन रीमा ने हार नहीं मानी। उसने अरुण से खुलकर बात की और उसे यह समझाने में सफल रही कि शादी सिर्फ लड़की का त्याग नहीं, बल्कि दोनों का साथ होता है। धीरे-धीरे अरुण ने परिवार को भी रीमा के नजरिए से देखना शुरू किया।

रीमा की कहानी उन लाखों लड़कियों की कहानी है, जो शादी के बाद खुद को खो देती हैं। लेकिन हर लड़की को याद रखना होगा—वह सिर्फ किसी की पत्नी या बहू नहीं, बल्कि एक इंसान है, जिसकी भावनाएँ भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं।

इंजी. शेर बहादुर
रायबरेली, उत्तर प्रदेश

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