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लाख की चूड़ियाँ // लेखिका डॉ निर्मला शर्मा

 

लाख की चूड़ी जब टूटती है तो उसे आग में तपाकर फिर से जोड़ दिया जाता है और वह पुनः पहले जैसे हो जाती है ।शायद इसीलिए सुहागिन स्त्रियों को लाख की चूड़ियाँ पहनाई जाती हैं । उन्हें इन चूड़ियों के माध्यम से यह समझाया जाता है कि जब भी टूटो अपने ही आत्मबल में तपकर पुनः पहले जैसी हो जाओ । लाख की चूड़ी का टूटना अशुभ होता है, क्योंकि यह सुहाग की प्रतीक होती है। लाख की चूड़ी का टूटना जितना अशुभ होता है ठीक वैसे ही स्त्री का टूटना भी परिवार के लिए अशुभ ही होता है।
इस बात को कोई और समझे या न समझे स्त्री भली भांति समझती है इसीलिए स्त्री अपने भीतर टूटकर भी लाख की चूड़ी की तरह पुनः जुड़ जाती है अपने परिवार से । पर जहां से वह टूटती है उसके अंदर उस हिस्से की कोमलता मर जाती है। वैसी ही कठोरता आती है जैसी कठोरता लाख की चूड़ी में टूटकर जुड़ने के बाद आती हैं।
मैं तो कहती हूँ कि चूड़ी का टूटना उतना अशुभ नहीं होता जितना अशुभ किसी स्त्री का टूट जाना होता है। स्त्री इतना बर्दाश्त करती है कि हजार बार टूटने के बावजूद भी अपने बच्चों के लिए, सुहाग के लिए, परिवार के लिए पुनः जुड़कर खड़ी हो जाती है यह बात लाख की चूड़ियाँ पहनते -पहनते वह सीख जाती है।
न बचा सको चूड़ियों को टूटने से तो कोई दिक्कत नहीं लेकिन स्त्री को टूटने से बचा लेना । उसके भीतर की कोमलता बची रहेगी। घर परिवार में उस कोमलता का संचार होगा नहीं तो चूड़ी टूटने से सुहाग उजड़े या न उजड़े स्त्री के टूटने से घर जरूर उजड़ जाएंगे।
डॉ निर्मला शर्मा
उदयपुर राजस्थान

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