Uncategorized

प्रकृति और हम — डॉ सरिता चौहान

 

प्रकृति से हमारा नाता कितना गहरा है, इससे हम चिर परिचित हैं। हम प्राकृतिक होकर जी ही नहीं सकते। प्रकृति के दो रूप भले ही हो सकते हैं–हमारी अतः प्रकृति और दूसरा हमारी बाह्य प्रकृति। अब इन दोनों में सामंजस्य बिठाना ही जीवन जीने की कला है। कितना सुंदर है न! अपनी बाह्य प्रकृति–हर जगह पेड़ पौधे और लहराती हुई वनस्पतियां। खिले हुए रंग-बिरंगे और सुंदर-सुंदर फूल, उन पर गुंजार करते हुए भंवरे और उड़ती हुई रंग बिरंगी तितलियां। क्या हम कभी सोचते हैं? कि हमारी अंतःप्रकृति उतनी ही सुंदर है कि नहीं। हम भूल जाते हैं कि सामंजस्य से बिठाने के लिए उनके अनुरूप होना पड़ता है। क्या? प्रकृति में जितनी संवेदना है, हमारे भीतर भी है। क्या उन फूलों की मुस्कुराहट हमारे भीतर भी है या हमारा मन भीरू है। क्या ?वह फूल हमें मुस्कान नहीं सिखाते। जब जीना ही है तो हम मुस्कुराके क्यों नहीं जीते? हम क्यों जिंदगी में रोना रोते रहते हैं? हम अपने जीवन में संघर्ष क्यों नहीं करते? हम चाहे जिस भी क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं, हम यही सोच रहे होते हैं की काम काम और आराम ज्यादा करना पड़े। हम यह सोचते ही नहीं की जीवन की रफ्तार कब थम जाए हम अपने कार्यों को पूर्ण करने में पूरी ऊर्जा लगाएं। बिना मतलब का जद्दोजहद करते रहते हैं और हासिल कुछ भी नहीं कर पाते हैं। क्या कभी हम सोचते हैं की प्रकृति हम सबके लिए है और हम किस-किस के लिए जीते हैं। हम तो अपने ही जीवन यापन में व्यस्त रहते हैं। कभी किसी की खुशी के बारे में नहीं सोचा कि अगर मैं कुछ ऐसा करूं कि दूसरा भी खुश हो जाए, कभी किसी के दुख को देखकर दुखी नहीं हुआ तो हमारे जीवन का क्या मूल्य है? हमें भली भांति जानना चाहिए की जीवन एक मूल्य है, एक आशा है, एक अभिलाषा है, एक निरंतरताहै, एक गाति है। जीवन का पहिया कब थम जाए, इसको कोई नहीं जानता, फिर भी हम अलसी से भरे हुए हैं, चैतन्यता से शून्य हैं। प्रकृति के प्रति भी उदार नहीं हैं। हमें मानवीय सहिष्णुता की सीख प्रकृति से लेनी चाहिए। प्रकृति जैसा ही सुंदर उदार और न्याय प्रिय होना चाहिए जो हम होना नहीं चाहते, तो हमारी अतः प्रकृति और बाह्य प्रकृति से तालमेल कैसे बैठेगी। जब तक हम इस सामंजस्य को बिठाने में असमर्थ रहेंगे तब तक हम ठीक तरीके से जीवन नहीं जी पाएंगे। सामंजस्य से बिठाने की इस कला का नाम ही जीवन है। इसीलिए तो कहा गया है-जीवन जीना एक कला है।
डॉ.सरिता चौहान
गोरखपुर ,उत्तर प्रदेश

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!