संस्कार // लेखिका स्वर्णलता सोन

और सोनू के पैर अचानक ठिठक गए जब उसने मंदिर के बाहर पड़ी हुई बहुत सी एक जैसी चप्पलों को देखा।उसकी आंखों के सामने अपनी मां के फटे हुए, खून रिस्ते हुए पैर आ गए। उसका मन खुशी से भर गया,”अरे इतनी चप्पलों में से एक जोड़ा उठा भी लूं तो किसी को क्या पता चलेगा” उसने सोचा।
उसके मन में लोभ उत्पन्न हो गया। उसने एक चप्पल पहन कर देखी उसे फिट आ गई थी वो चप्पल,उसकी मां के पैर लगभग उतने ही बड़े थे जितने उसके खुद के थे।
उसने इस चप्पल का जोड़ा ढूंढना चाहा, कि उसको बचपन में सुनी मां की कहानी याद आ गई जो उसकी मां उसे सुनाती थी, कि चोरी करना पाप है,और लालची कुत्ते वाली कहानी जो पूरी के चक्कर में अपनी आधी भी खो देता है।
उसके पैर थम गए,और उसने तुरंत चप्पल उतारी और बाहर निकल गया।
तभी एक सेठ जी ने उसे रोका,वो सेठ जी बड़ी देर से उसकी हरकतों को देख रहे थे।”ये तुम क्या कर रहे थे” उन्होंने उससे पूछा। “कुछ नहीं अंकल मेरी मां के पैरों से खून निकलता है जब वो नंगे पैर चल कर काम पर जाती है”उसने बताया। “तो फिर तुमने ली क्यों नहीं” उन्होंने पूछा। नहीं अंकल मेरी मां ने सिखाया है चोरी करना पाप है,अगर मैं चोरी की चप्पल ले भी जाता तो वो कभी नहीं पहनती,बल्कि मुझे गुस्सा होती। सेठ जी की आंखों में आसूं आ गए,वो सोनू को ले कर बाजार गए और दो जोड़े चप्पल खरीदे एक सोनू के लिए और एक उसकी मां के लिए,और सोनू के साथ उसके घर जा कर उसकी मां को देखा,और कहा,धन्य हो बहन जो बच्चे को इतने अच्छे संस्कार दिए है।
सच में ही इतने छोटे बच्चे ने भी लोभ पर अपनी विजय प्राप्त करी,ये आपके दिए हुए संस्कार की वजह से ही हुआ।।
चलो मेरे साथ मेरे घर,आप मेरे घर का काम करिएगा,और सोनू को मैं पढ़ाऊंगा ,ये बहुत होनहार बच्चा है।।कुछ जरूर बनेगा।।
स्वर्ण लता सोन