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विष या अमृत — कृत्या नन्द झा

 

दिनकर को भारी मन से अपने बड़े भाई से अलग होना पड़ा l पारिवारिक कलह के कारण उसे ना चाहते हुए भी यह कदम उठाना पड़ा l
पिता के मृत्यु के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति बिगाड़ते चली गई l माँ को जो पैंशन मिलता घर के ख़र्चे में खत्म हो जाती l दिनकर के पढ़ाई पर असर पड़ने लगा l भाभी ने कई बार उसे अलग हो जाने को कहा ताकि पेंशन और पैतृक संपत्ति से वह अच्छी शिक्षा के लिए शहर चला जाय l राधिका भाभी माँ का भी भार उसे नहीं देना चाहती थी l मगर ना माँ और ना ही दिनकर को यह मंजूर था l
धीरे-धीरे राधिका भाभी के व्यावहार में अन्तर आने लगी l माँ और दिनकर के प्रति ना केवल ला परवाह हुई बल्कि ताने देने लगी l उसके पति मनोहर को यह अच्छा नहीं लगा l फलस्वरुप कलह बढ़ने लगी और पारिवारिक माहौल शान्ति से संग्राम में परिणत हो गया l और दिनकर को मनोहर के आंसुओं के सामने बँटवारे को स्वीकार करना पड़ा l माँ मनोहर के हिस्से में प्रथम पाँच वर्षों के लिए आयी l दिनकर को आधार पेंशन का पैसा मिलने लगा और वह अच्छी और उच्च शिक्षा के लिए इलाहाबाद चला गया l बीच बीच में भैया और माँ मिलने आता l भाभी उसके लिए नाश्ता वगैरह भेजती मगर कभी आती नहीं l ना ही दिनकर तीन साल तक गाँव गया l
दिनकर का मेहनत रंग लाया l वह भारतीय लोकसेवा आयोग की परीक्षा पास कर ही गाँव आया l राधिका भाभी के प्रति दिनकर के मन में मैल जम गया था l रात्री में वह अपने मित्र के यहाँ खाने चला गया l जब दरवाजे पर पहुंचा.. उसका मित्र विवेक अपने माँ से कह रहा था.. आज दिनकर जो भी है वह राधिका भाभी के कारण है l किस प्रकार उसको पढ़ाने के लिए और खर्च जुटाने के लिए दिल पर पत्थर रखकर पारिवारिक कलह का नाटक की l दिनकर भले भाभी का हलचल तक नहीं पूछा, मगर वह दिनकर पर जताने से दूर रही l दिनकर आँसुओं में डूब गया l वह सपने में भी नहीं सोच पाया था कि राधिका भाभी को क्या कहें….विष या अमृत..

कृत्य नंद झा अमृत

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