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ज़रा सोचिए ,दृश्य नम्बर १ // लेखिका अलका गर्ग

 

पति पत्नी में ज़ोरदार झगड़ा हो रहा है । बूढ़े माँ बाप बाहर बैठे उनका झगड़ा बंद होने की प्रार्थना कर रहे हैं और मन ही मन बहुत घबरा रहे हैं कि बात इतनी न बढ़ जाए कि दोनों का रिश्ता ख़राब हो जाए और चीजें फेंकने और मौन व्रत की नौबत आ जाए।
तभी पति पत्नी लड़ते हुए कमरे से बाहर निकलते हैं और बरस पड़ते हैं माँ बाप पर ..आप दोनों मज़े से झगड़ा सुन रहे हैं ये नही होता आ कर हमें रोकें (एक दूसरे की तरफ़ इशारा करते हुए ) इसे समझायें
आप लोगों को तो बस अपने आराम और खाने पीने से मतलब है घर गृहस्थी से कोई मतलब नही चाहे घर में कुछ भी हो आपकी बला से आपको तो बहुत मज़ा आ रहा होगा।
माँ बाप सर नीचे झुकाए हुए सब सुन लेते हैं।

दृश्य नम्बर दो

पति पत्नी में ज़ोरदार झगड़ा हो रहा है ।तू तड़ाक चीजें पटकना एक दूसरे पर आरोपों की बौछार हो रही है।
माँ बाप बाहर बैठ कर कुछ देर सुनते रहे और दोनों की शांति की कामना करते रहे।
जब बर्दाश्त नही कर सके तो बात बढ़ने के डर से बुजुर्ग होने की हैसियत से उन्हें समझाने गए।
अब पति पत्नी दोनों मिल कर-
आपको क्या मतलब है हम लड़ें या प्यार करें,ये हम पति पत्नी का मामला है आपको टाँग अड़ाने की क्या ज़रूरत है।इस उमर में ये तो होता नहीं है कि घर गृहस्थी से बाहर निकले पूजा पाठ तीर्थ में मन लगायें।बस कान हमारी तरफ़ ही लगे रहते हैं।अरे हमें बक्श दीजिए।
बुजुर्गों ने चुपचाप सर झुका कर सुन लिया।

क्या अपनी ग़रज़ और ज़रूरत के हिसाब से अपने बुजुर्गों को चलाना सही है?
दोस्तों ,रिश्तेदारों, पड़ोसियों ,बच्चों , घर ऑफ़िस के काम का ग़ुस्सा या चिढ़ उन निरीह बेज़ुबान पर निकालना सही है ?
क्यूँकि हम अच्छी तरह से जानते हैं कि इन सब से ज़रा सा ऊँचा या टेढ़ा बोलने पर ये दो की चार सुनाएँगे और बात करना भी छोड़ देंगे।
पर ये घर में बैठे माँ बाप दादा दादी , आपका बदतर व्यवहार और अपमान झेल कर भी अब इस उम्र में कही नहीं जाएँगे।क्यूँकि ये पहले ही अपना सब कुछ अपने लाड़लों को दे कर अब चुप बैठने पर मजबूर हैं।
क्या इनके साथ ऐसा व्यवहार उचित है ?
कृपया इनको अपना punching pillow ना बनायें।

अलका गर्ग,गुरुग्राम

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