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अपंग, दिव्यांग और साअंग : एक चिंतन क्रमांक ३ — सीमा शुक्ला

अपंग, दिव्यांग और साअंग : एक चिंतन क्रमांक ३
प्राचीन काल से मानव अपनी हर काबिलियत का आकलन दूसरों की दृष्टि से करता है. वह उसी रूप में हर क्षण प्रवीण प्रखर होता जाता है, जैसा आकलन उसके लिए समाज द्वारा किया जाता है. किसी भी जीव को “दिव्यांग ” कहने से पहले ‘दिव्यांग’, शब्द की व्यापकता को समझने की आवश्यकता है. मेरे विचार में सिर्फ शाब्दिक अर्थ समझने के स्थान पर लोगों में इसके अर्थ को अपनाने की जागरूकता लाना आवश्यक है. हमारे समाज में “अपंग” शब्द अति व्याख्यायीत और प्रचलीत शब्द है. परन्तु “दिव्यांग” की परिभाषा अभी भी अल्प व्याख्या के कारण अपनी व्यापकता प्राप्त नहीं कर पाई है. “दिव्यांग’, दो शब्दों का मिश्रण हैं ‘दिव्य’ तथा ‘अंग’. अपंग जीव समाज में हेय ना समझा जाए इसलिए शासन ने इस शब्द को ‘अपंग’, जीवो के लिए उपयुक्त किया. यहां हर एक जीव को यह समझना आवश्यक है की ‘दिव्य’, का अर्थ सकारात्मक सोच को, भव्यता को प्रकट करता है. तब प्रश्न यह उठता है की जिस जीव में एक या अनेक अंगों की कमी आकार, रंग और रूप की दृष्टि से हो वह भला भव्य कैसे होगा. इस प्रश्न का बड़ा सरल सा उत्तर है दिव्य या भव्य वही हैं जो शारीरिक मानसिक या अन्य कमीयों या विभिन्नताओं के बावजूद अपने हर गुण को निखार कर समाज में अपना एक अस्तित्व बना लें. एक बार पुनः मैं समाज की तरफ दृष्टि करती हूं तो मैं यहां “दिव्यांग” शब्द का प्रयोग गलत पर्याय में ही देख पाती हूं. इस सकारात्मक शब्द का प्रयोग सुयोग्य सुपठित समझदार साक्षर समाज का निन्यानबे प्रतिशत हिस्सा ‘अपंग अपाहिज’ के पर्याय के रूप में ही‌ करते हैं और इस शब्द की सही सकारात्मकता को ध्वस्त कर देते हैं. हमें इस “दिव्यांग” शब्द के प्रयोग से पहले इस शब्द की व्यापकता की व्याख्या कर समाज के सभी भद्र सदस्यों को जागरूक करने की आवश्यकता है. जिससे वे सभी ‘अपंग; अपाहिज और दिव्यांग’, के अंतर को समझ पाए.
यदि कोई “अपंग” जीव समाज में “दिव्यांग” बनने का प्रयास करता है तो उसे कुछ मात्रा में समाज से सहयोग तथा अत्याधिक मात्रा में समाज से प्रोत्साहन की आवश्यकता होती है. किसी भी जीव के ‘अपंग’ से ‘दिव्यांग’ बनने की प्रक्रिया पूर्णतः समाज पर निर्भर करती है. अतः सभी प्रबुद्ध जीवों के लिए यह आवश्यक है की वे “दिव्यांग” शब्द की व्यापकता को प्रथम स्वयं समझे फिर अपने आसपास के अन्य जीवों को इस‌ शब्द की महत्ता बताए. ऐसा व्यवहार ही हमारे समाज को अपंगता शब्द की नकरात्मकता से उभारकर विकास की सकारात्मकता की ओर अग्रसर होने में सहयोग ‌कर पाएगा
सीमा शुक्ला चांद

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