कहानी — विछुड़ा स्नेह — उर्मिला पण्डेय

झरनों की कल कल ध्वनि सुनाई दे रही थी भगवान अंशुमाली आकाश में छाए हुए थे धीरे-धीरे दिनकर दिन के साथ आगे बढ़ रहे थे।
शाम का समय हो गया निशा अपने पति की परदेश जाने की तैयारी कर रही थी।पति विकास भी अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करता था वह बैठा बैठा सोच रहा था कि यदि यह पेट न होता तो कोई भी कष्ट नहीं उठाते।(ना कोई जोता ना कोई बोता,जो पापी पेट न होता।)
विकास भी एक नेक इंसान था उसकी शादी को दो तीन बर्ष ही हुए थे उसके एक बेटा था जो छः माह का था।बेटे का नाम उसने उज्ज्वल रखा था बेटे से माता पिता बहुत स्नेह करते थे।
विकास फौज में नौकरी करता था।वह जाने लगा निशा को बहुत व्याकुलता हो रही थी कि मैं पति बिना कैसे अकेली रहूंगी।
विकास के जाने के बाद निशा अपने बेटे को हृदय से लगा कर रखती उसका पालन-पोषण करती थी।
धीरे-धीरे उज्ज्वल पांच साल का हो गया निशा ने उसका एक अच्छे स्कूल में दाखिला कराया और प्रतिदिन उसे अच्छी तरह से पढ़ाया करती थी। क़रीब पंद्रह साल गुजर गए पंद्रह साल का बेटा युवा लगने लगा। निशा अपने बेटे को छाती से लगा कर रखती बहुत प्यार करती थी।
विकास बहुत निष्ठावान व्यक्ति था वह निष्ठापूर्वक कार्य करता था। उसने इतने सालों से छुट्टी नहीं ली
एक दिन विकास ने सोचा मुझे बहुत समय हो गया चलो अपने बेटे और पत्नी को देख आऊं निशा क्या सोचती होगी ।
रात का समय था विकास अपने शहर कुशीनगर पहुंचा।
निशा अपने बेटे को छाती से छिपकाए सो रही थी। विकास ने खिड़की से झांक कर देखा कि निशा किसी युवक के साथ लेटी है विकास को ध्यान ही नहीं रहा कि मेरा बेटा इतना बड़ा हो गया है।
वह छत से कूद कर कमरे में पहुंचा और अपनी बंदूक निकालने लगा निशा पर चलाने के लिए तभी उसकी नज़र ऊपर फोटो पर पड़ी जो उसके बेटे की शिशु अवस्था की थी उसका मन कुछ शांत हुआ।
उसने फिर ऊपर की तरफ़ देखा तो पंक्तियां लिखीं थीं कि (बिना बिचारे जो करे सो पाछे पछताय।काम बिगारै आप नौ जग में होत हसाय।।
उन पंक्तियों को पढ़कर उसने अपनी बंदूक रख दी। निशा भी जाग गई, निशा ने अपने बेटे को उठाया और कहा कि यह तुम्हारे पिताजी हैं पैर छुओ।
विकास अपनी सोच पर बहुत शर्मिंदा हो रहा था। विकास ने निशा से कहा कि मेरी बुद्धि में पता नहीं क्या हो गया मुझे तुम जैसी पतिव्रता नारी फर शक हुआ मैं बहुत शर्मिंदा हूं।आज हमारे इस बिछुड़े स्नेह और इन पंक्तियों ने तुम्हें बचा लिया।
कोई भी कार्य सोच-समझकर ही करना चाहिए।
उर्मिला पाण्डेय कवयित्री मैनपुरी उत्तर प्रदेश।