Uncategorized

भारत में तलाक की बढ़ती दरें कारण और निवारण — एम एड शोधार्थी शिवानी स्वामी

 

भारत एक ऐसा राष्ट्र जहां की मिट्टी से लेकर पर्वतों की चोटी तक की अपनी एक अनोखी गाथा रही है जहां की संस्कृति विश्व पटल तक अपनी पहचान रखती है परंतु आज भारत की सांस्कृतिक पहचान में तेजी से गिरावट आ रही है जिसमें एक समस्या है तलाक की बढ़ती दरें जहां भारत की एक‌ बड़ी आबादी सनातन धर्म में सात फेरे एक संस्कार के रूप में अटूट बंधन को दर्शाते हैं वही आज इस रिश्ते को संभाल कर रख पाना एक चुनौती का रूप धारण करता जा रहा है जिसमें बहुत सी समस्याओं का ‌योगदान‌ है अगर उन समस्याओं पर ध्यान केंद्रित किया जाए और उनके परिणाम तक पहुंचा जाए‌ तो विवाह विच्छेद के बढ़ते आंकड़े को कम कर सकते हैं
दिल्ली, मुंबई,कोलकाता जैसे शहरी राज्यों में तलाक की दर 30 प्रतिशत तक पहुंच गई है अन्य राज्यों की भी यही स्थिति होती जा रही है।

1 जिंदगी जीने का आधुनिक ढंग
परिवर्तन होना स्वाभाविक है लेकिन ग़लत प्रयोग समस्याओं को जन्म देता है आज जहां सोशल मीडिया जिंदगी को सरल बना रहा है वही अनेकों समस्याओं को भी जन्म दे रहा है सोशल प्लेटफॉर्म पर अधिक समय व्यतीत करना खान पान की बदलती आदतें यह तो हम सभी ने सुना है एक स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क होता है और स्वस्थ मस्तिष्क के रहने से ही स्वस्थ विचारधारा उत्पन्न हो सकती है
जब हम अपने मस्तिष्क को पोषण की मात्रा कम और शोषण की मात्रा अधिक देंगे तो गंभीर परिणाम होने स्वाभाविक है जो रिश्तो में तनाव का कारण बनता जा रहा हैं अधिकतर किचन में आज नाश्ते में अंकुरित चने छोड़कर जेम्स ब्रेड खाना पसंद किया जा रहा है दूध की जगह शराब ने ले ली है मक्का बाजरे से बेहतर पिज़्ज़ा हो गया है और मोमोज की बढ़ती हुई बिक्री को कौन‌ नहीं जानता
फास्ट फ़ूड न केवल बाहरी रूप से शरीर को ख़राब कर रहा हैं बल्कि आंतरिक और मानसिक रूप से भी प्रभावित करता हैं
इनमें प्रयोग होने वाला मोनोसोडियम ग्लूटामैट (MSG) जितना‌ फास्ट फूड में स्वाद बढ़ता है उससे अधिक समस्याएं जिससे ब्रेन डैमेज, अधिक वजन बढ़ना तंत्रिकाओं तंत्र का धीमा पड़ना‌ सांस फूलना‌ यहां तक की‌ सेक्स स्टैमिना को असंतुलित करने जैसी समस्याओं को जन्म दे रहा है‌ न केवल बीमारियों को बढ़ावा मिल रहा है बल्कि लोगों के बढ़ते नैतिक व्यवहार के पतन का भी कारण हैं।

2 लिव-इन रिलेशनशिप
आज लिव-इन की की परिभाषा प्रेम की परिभाषा से बिल्कुल भिन्न है जो सर्वोत्तम सद्गुण को प्राप्त कर जाए वही प्रेम है जो परमात्मा में मिल जाए या परमात्मा जिसमें मिल जाए सद्गुण स्वरुप। आज प्रेम की परिभाषा आकर्षण से शुरू होकर नग्नता पर आ कर थम गई है जिसका ना कोई आधार है ना आकार ना वर्तमान है ना भविष्य और इसको हमने स्वतंत्रता का नाम दे दिया है तो फ़िर हमें इसको नकारात्मक स्वतंत्रता कहना चाहिए क्योंकि स्वतंत्रता हमेशा अपने साथ कर्तव्य और जिम्मेदारियां लेकर आती है जिन से आज के लिव इन रिलेशनशिप का कोई संबंध नहीं जान पड़ता
लड़कियों को यह समझना चाहिए की जो जोखिम नहीं ले सकता वह तुम्हें क्यों और कितना चाहेगा जोखिम चाहे अपनी पवित्रता को बनाए रखने का हो या वैचारिक सूझ बूझ का और लड़कों को यह समझना चाहिए जो तुम देख रहे हो वो कितना यथार्थ है अनुकूल है भी या नहीं इतना भी समझ लोगे तो शायद रिश्ते, रिश्ते कहलाए।
जिंदगी बहुत कीमती है किसी ने खेत बेचकर उसको संवारने के सपने देखे हैं तो किसी ने अपनी चूड़ियां गिरवी रखकर रिलेशनशिप की वज़ह से इसको न गंवाएं जो आज लिव इन में नैतिक प्रेमी या प्रेमिका नहीं है वो भविष्य में नैतिक पति या पत्नी नहीं हो सकते अपने जीवन को निरंतर सकारात्मक दिशा की ओर अग्रसर रखें।

3 यौन शिक्षा
जब तक किसी मुद्दे पर चर्चा नहीं होती तब तक हम उसे सही ग़लत की तराजू पर नहीं तोल सकते यौन शिक्षा न केवल ज़रूरी बल्कि अनिवार्य होनी चाहिए नहीं तो‌ समस्याओं का जन्म लेना स्वाभाविक है कितने भारतीय युवा है जो वात्स्यायन की कामसूत्र से परिचित है भारत के मंदिर कहे जाने वाले विद्यालयों में कितनी कक्षाएं संचालित होती है ऐसी जो ब्रह्मचर्य के वैज्ञानिक तरीकों से छात्रों को रूबरू कराती हो, एक भी नहीं केवल कुछ प्रोजेक्ट केवल उच्च शिक्षण संस्थानों में वह भी यौन बीमारियों के संदर्भ में जैसे कि एचआईवी एड्स लेकिन मैं कहती हूं यदि भारत सरकार उच्च माध्यमिक स्तर पर शिक्षण का करिकुलम इस प्रकार निर्धारित करें जिससे बालकों में ब्रह्मचर्य के प्रति जागरूकता बढ़े और सैक्स शिक्षा द्वारा उन्हें यथार्थ से परिचित कराकर एक सुदृढ़ और जागरूक व्यक्तित्व तैयार किया जा सकता है।

4 अभिभावकों की प्रेम संबंध के प्रति घृणा और जातिवाद
जहां भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 बालिक होने के पश्चात अपने पसंद का जीवनसाथी चुनने का अधिकार देता है जहां की प्राचीन सभ्यता‌ वैदिक सभ्यता विवाह के संदर्भ में उदार रही है वहीं आज कुछ अभिभावकों को यह समझने की आवश्यकता है की जबरदस्ती का विवाह अनैच्छिक विवाह या गैर पसंदीदा विवाह न केवल अनैतिकता को जन्म दे रहा है बल्कि विवाह जैसे पवित्र संबंधों की पवित्रता को भी धूमिल कर रहा है आज के परिप्रेक्ष्य में जब तक हम कुछ चीजों के प्रति अपना दृष्टिकोण नहीं बदलेंगे तब तक समस्याओं पर विराम लगाना मुश्किल होगा इसका एक प्रमुख कारण जातिवाद भी है जो भारतीय सभ्यता को दीमक की तरह‌ आज भी जर्जर करने का कार्य कर रहा है भारत को आज भी आवश्यकता है जातिवाद के प्रति अपनी धारणा को और प्रखर रुप से बदलने की।

5 पुस्तकों से अलगाव
सभ्यता और संस्कृति एक ऐसा पौधा है जिसको सींचने के लिए ज्ञान रूपी जल की आवश्यकता होती है आज के समय में पुस्तकों से अलगाव बढ़ता ही जा रहा है पुस्तकें बहुत सी समस्याओं का समाधान देने में सक्षम होती है अधिकांश शिक्षार्थी अपने सिलेबस से बाहर की पुस्तकें पढ़ना ही नहीं चाहते या यू कह लीजिए प्रतियोगिता की भाग दौड़ वाली जिंदगी ने आज के समाज को आरामदायक जिंदगी तो दी है लेकिन सदगुण छीन लिया है
किसी समाज में सद्गुण को बनाए रखने के लिए अच्छी किताबें अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है पुस्तकें सिर्फ ज्ञान ही नहीं देती अनुभव‌ भी देती है वो अनुभव जो हमें हमारी गलतियों से बचा सकता हैं।
संभव है अगर जिंदगी में पुस्तकों को पढ़ने का शौक शामिल कर लिया जाए तो बढ़ रहे तलाक के आंकड़ों को भी कम किया जा सकता है आज का युवा सिर्फ नौकरी के लिए पढ़ता है इसलिए वह शिक्षा भी सिर्फ़ नौकरी तक ही काम आ रही है तो अच्छी पुस्तकों को अपने जीवन का सहभागी बनाएं।

6 जीवन के सतत लक्ष्य का निर्धारण
यदि कोई महिला या पुरुष जीवन का सतत लक्ष्य निर्धारित कर ले तो संभव है आज के आधुनिक युग में इन हो रही समस्याओं से निजात मिल सकती है
अपनी आकांक्षाओं को पूरा करना किसी के जीवन का उद्देश्य न बनाएं क्योंकि अपेक्षाएं उतनी ही अच्छी होती है जितने काबिल हम खुद होते हैं उनको पूरा करने में, इस बात को दहेज लोलुपता में डूबे लोगों के दृष्टिकोण से समझा जा सकता है।

एम एड शोधार्थी शिवानी स्वामी
गाजियाबाद उत्तर प्रदेश।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also
Close
Back to top button
error: Content is protected !!