संस्मरण – स्कूल के दिनों की कुछ यादें…मीनाक्षी मोहन ‘मीता’

बात उन दिनों की है जब मैं सातवीं कक्षा में पढ़ती थी,स्वभाव से बड़ी शर्मीली,शांत ,चुप रहने वाली,पर पढ़ाई में तेज…
विद्यालय में होने वाली प्रार्थना सभा के लिए एक बार कक्षा अध्यापिका ने मुझे स्टेज पर एक कविता प्रस्तुत करने का काम सौंपा।मैंने मना किया पर वो न मानी,शायद कक्षा में पाठ पढ़ते हुए वो जान चुकी थीं कि मेरा वाचन अच्छा है… ये बात अब समझ आती है कि अध्यापक अपने विद्यार्थियों के छिपे गुणों को कैसे पहचान लेता है।मैं डर रही थी पर उन्होंने मेरा साहस बढ़ाया कि बेटे तुम चिंता मत करो मैं तुम्हारे साथ रहूंगी वहां।जैसे तैसे करके कविता याद तो हो गई।जब सुबह प्रार्थना सभा के दौरान मेरा नाम लेकर मुझे स्टेज पर बुलाया गया तो जैसे मेरी जान ही निकल गयी।शायद स्टेज का डर ही था कि जब माइक के सामने खड़ी हुई और सामने सब को देख कर जैसे सब भूल गयी।जोर से कांपने लगी,आंखों में आंसू भर आये…पर मेरी मैंम कहाँ हार मानने वाली थी,उन्होंने तो जैसे ठान ही लिया था कि आज मेरा डर दूर करके ही रहेंगी…मुझे अब भी महसूस होता है कि किस तरह से उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा फिर कविता सुनानी शुरू कर दी.. बोली मेरे साथ साथ बोलो…इस प्रकार मैनें कविता पाठ शुरू किया…जैसे भुला हुआ सब याद आने लगा।मैंने पूरी कविता पढ़ी।स्टेज से नीचे आने के बाद उन्होंने मुझे कहा….जो मुझे आज तक याद है और अपने विद्यार्थियों को भी सिखाती हूँ…
उन्होंने कहा जब स्टेज पर आओ तो ये सोच लो कि जब तक तुम्हारी बात पूरी नही हो जाती स्टेज तुम्हारा है।सब तुम्हें सुनेंगे…डरना नही है…
दूसरा जब बोलने का अभ्यास करो तो शीशे के सामने खड़े हो कर…बस वो दिन और आज तक कभी स्टेज से डर नही लगा…मेरी अभिव्यक्ति का साथी बन गया…जैसे उन्होंने बोलना…हाव भाव सिखाये… मन में रच बस गए…फिर कभी पीछे मुड़ कर नही देखा…जहां भी जाती किसी प्रतियोगिता आदि में …तो अक्सर पीछे से सुनने तो मिलता…हमारा नम्बर तो गया…सच में अध्यापक जौहरी होते हैं जो अपने बच्चों को तराश कर उनकी छुपी प्रतिभाओं को निखरते हैं…
आज भी कई बच्चों के माता पिता यह कह जाते है कि हमें तो पता ही नही था, मैम… कि हमारा बच्चा इतना अच्छा थियेटर आर्टिस्ट या वक्ता है…
नमन है अपने उन अध्यापकों को जिन्होंने जीवन को ये सीख दी….
मीनाक्षी मोहन ‘मीता’
पंचकूला हरियाणा