उत्सव (कहानी) — राजेन्द्र परिहार”सैनिक”

वैसे तो उसका नाम बड़े प्यार से घरवालों ने श्याम सुंदर रखा था।किंतु अत्यंत गरीब परिवार से होने के कारण गांव में कोई भी उसे श्याम सुंदर नहीं कहकर श्यामू कहने लगा और यही नाम पक्का हो गया उसका। पिता रामेश्वर (जिन्हें भी गरीब होने के कारण दुनिया रामू काका कहती थीं) बहुत ही निर्धन व्यक्ति थे।निम्न वर्ग से होने के कारण गांव से बाहर की तरफ एक टूटी फूटी झौपड़ी में रहता था श्यामू का परिवार।रामू काका जमींदार के खेतों पर हरवाहे का काम करते थे। श्यामू का गांव बहुत छोटा था लेकिन शहर से कुछ ही दूरी पर स्थित होने के कारण गाहे-बगाहे शहर में किसी ना किसी काम से आना जाना होता रहता था।
एक बार शहर में बहुत बड़ा उत्सव का आयोजन होने वाला था। जगह जगह पोस्टर लगे हुए थे और सबसे बड़ी बात यह थी कि बहुत ही लोकप्रिय फिल्म स्टार उस उत्सव में शिरकत करने वाले थे। श्यामू ने एक दो बार दोस्तों के साथ पिक्चर हॉल में पिक्चर देखी थी सो उसे अपने मनपसंद हीरो को आमने-सामने देखने की ललक जाग उठी। गांव से और भी बहुत से बच्चे उत्सव देखने जाने वाले थे। क्यों कि यह बहुत ही बड़ा उत्सव था और एक स्टेडियम में आयोजित किया जाना था। श्यामू ने घर वालों से उत्स्व देखने की मंशा जाहिर की तो घर वालों ने साफ इंकार कर दिया। श्यामू के पास पैसे के नाम पर फूटी कौड़ी भी नहीं थी लेकिन उत्सव देखने की ललक में उसने अपनी टूटी फूटी साइकिल उठाई और शहर की ओर चल दिया। पूछते पूछते स्टेडियम तक भी जा पहुंचा। वहां का नज़ारा देखकर वो हैरत में पड़ गया। हजारों की भीड़ भाड़, टिकट के लिए लंबी लाइनें लगी देख निराश होकर एक तरफ सीढ़ियों पर जाकर बैठ गया। दो घंटे बाद उत्सव आरंभ होने वाला था। धीरे-धीरे सब लोग स्टेडियम के अंदर चले गए और मैन गेट पर तीन चार गार्ड दिखाई दे रहे थे और बाहर की तरफ श्यामू अकेला गुमसुम बैठा हुआ था। स्टेडियम के अंदर की आवाजें उस तक भी पहुंच रही थी, लेकिन वो उन स्टार्स तक पहुंचने में असमर्थ था। लगभग आधे घण्टे बाद एक वी आई पी कार मैन गेट के सामने आकर रुकी उसमें से एक शानदार शख्स बाहर निकला और एक नज़र श्यामू की तरफ देखा और उसने गार्ड का बुलाकर कुछ कहा। थोड़ी देर में गार्ड श्यामू के पास आकर बोला “चलो तुम्हें साहब ने बुलाया है”! श्यामू आश्चर्यचकित डरते डरते साहब के पास पहुंच गया और उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा, वो साहब ही तो उसके पसंदीदा हीरो थे जिन्हें देखने की इच्छा लेकर वो यहां आया था। दोनों की आपस में कुछ देर बात हुई और उन हीरो को मालूम हो गया कि श्यामू उनका प्रशंसक है लेकिन गरीब होने की वजह से उसे स्टेडियम में प्रवेश नहीं मिला। वो साहब उसे अपने साथ स्टेडियम में ले गए और वी आई पी सीट पर बैठकर उत्सव देखने का मौका भी दिलाया, और यह भी कहा कि उत्सव खत्म होने के बाद मुझसे मिलना जरूर। श्यामू तो जैसे कोई सपना देख रहा हो उसका उत्साह चरम पर पहुंच गया। उत्सव ख़त्म हुआ और श्यामू ढूंढते ढूंढते साहब तक पहुंच कर उनसे मिला।साहब ने उसे पास बुलाकर कुछ गिफ्ट पकड़ा दिए और एक लाख रूपए का चैक उसे थमा दिया। श्यामू भौंचक्का सा उन्हें देखता ही रह गया। साहब ने कहा “बेटा तुम मेरे प्रशंसक हो और मुझे देखने के लिए इतनी परेशानियों का सामना करते हुए मुझ तलक पहुंचे हो तो यह सब मेरी तरफ से उपहार समझकर रख लो! खूब पढ़ाई कर बड़े आदमी बनो। इतना कहकर साहब चले गए और श्यामू की खुशियों का तो जैसे कोई पारावार ही नहीं था।
राजेन्द्र परिहार”सैनिक”