बढ़ती गर्मी और गरीब — सुनीता तिवारी

भारत एक गर्म देश है यहाँ पर हर वर्ष अथाह गर्मी पड़ती है गर्मियों की मार हर एक को झेलना पड़ती है।
यहाँ का तापमान बहुत अधिक रहता है अमीर व्यक्ति तो ए सी में बैठकर काम चला लेता है पर गरीब बेचारा झुग्गी में रहने के लिए भी तरसता है बहुतों को वह भी नसीब नहीं होती है।
बढ़ती गर्मी में जब सूर्य देवता अपनी पर आते हैं झुलसा कर रख देते इंसान को।
गरीबों के लिए रैन बसेरे तो बनाये गए हैं जो सबको नसीब नहीं हो पाते।
झोपड़ में रहने वाले बिजली न रहने से भी परेशान रहते हैं।
टूटी छतें ऊपर से पॉलीथिन डाली हुई, सकरी गलियां और सामने गलियों में कीचड़ बहता रहता ऐसे में जीवन बसर करते हैं।
गर्मी में जब शहर के अधिकांश लोग दरवाजे बंद करके अपनी सामर्थ्य अनुसार पंखे,कूलर,एयर कंडीशनर की ठंडक में होते हैं तब गरीब वर्ग भट्टी मैं ही तपता रहता है।
कभी कभी अवैध अतिक्रमण तोड़ कर सरकार इन गरीबों को सड़क पर ले आती है।
यही जानलेवा गर्मी तब इनके लिए परेशानी बन जाती है बेचारे कहाँ जाकर बसे।
गरीब घर में जन्म लेने पर इनका क्या अपराध है?
न तो इन्हें ठंडा पानी मिलता न कोल्ड ड्रिंक्स न आइसक्रीम।
सभी गरीबों के लिए यह सब बातें सपने समान है।
सरकार को इनके लिए भी व्यवस्था बनाना चाहिए या गरीब जनसंख्या बढ़ने से रोकना चाहिए।
अन्यथा एक दिन भारत में गरीब जनसंख्या ही ज्यादा हो जाएगी और रईसों की कम रह जायेगी।
सुनीता तिवारी