बहन, बहू, बीवी, माँ — अनेक रूप, और वेदना — डॉ इंदु भार्गव

नारी इस सृष्टि की वह अद्भुत रचना है जो अनेक रूपों में जीवन को संवारती है। कभी वह बेटी बनकर घर में खुशियाँ लाती है, कभी बहन बनकर भाई की ताकत बनती है, कभी बहू बनकर नए घर की मर्यादा संभालती है, तो कभी बीवी बनकर साथी का जीवन संवारती है। और जब वह माँ बनती है, तो त्याग, ममता और बलिदान की मूर्ति बन जाती है। हर रूप में उसका योगदान अमूल्य होता है, फिर भी उसके जीवन में एक ऐसी वेदना छुपी होती है, जिसे समाज अक्सर अनदेखा कर देता है!
बेटी:
जन्म से पहले ही उसके अस्तित्व पर सवाल उठते हैं। अगर वह जन्म ले भी ले, तो पाबंदियों का एक घेरा उसे घेर लेता है। खेलने, पढ़ने, सपने देखने तक की स्वतंत्रता उसे छीन ली जाती है!
बहन:
वह भाई की रक्षक, उसकी मित्र और मार्गदर्शक होती है। लेकिन अक्सर घर के कामों में उसे ही अधिक जिम्मेदारियाँ दी जाती हैं, जबकि भाई को अधिक स्वतंत्रता दी जाती है!
बहू:
ससुराल में प्रवेश करते ही एक नई पहचान और जिम्मेदारियों का बोझ उसे सौंप दिया जाता है। अपने अस्तित्व को नए रिश्तों में ढालने की यह प्रक्रिया कठिन और कभी-कभी पीड़ादायक होती है!
बीवी:
वह पति की साथी तो बनती है, परंतु अक्सर अपने अधिकारों और भावनाओं की अनदेखी करवाती है। समाज उसे समर्पण की मूर्ति मानता है, पर उसके सपनों का क्या?
माँ:
जब वह माँ बनती है, तब वह निस्वार्थ प्रेम की पराकाष्ठा दिखाती है। पर इस भूमिका में भी उसकी थकान, उसकी इच्छाएँ, उसकी भावनाएँ दब जाती हैं!
हर रूप में वह समाज के लिए अनमोल है, लेकिन उसकी वेदना को समझना और उसका सम्मान करना हमारी जिम्मेदारी है। नारी केवल एक संबंध नहीं, एक भावना है, एक शक्ति है, और उसे केवल सहने वाली नहीं, बल्कि सुनने और समझने योग्य भी समझा जाना चाहिए!
निष्कर्ष:
नारी के इन सभी रूपों में एक ही बात समान है — उसका त्याग और उसकी वेदना। अब समय आ गया है कि हम उसे केवल रिश्तों की परिभाषा में न बाँधें, बल्कि उसके अस्तित्व को, उसकी इच्छाओं को, उसके हक को पहचानें और आदर दे!!
डॉ इंदु भार्गव जयपुर