बहू और बेटी – संस्मरण — उर्मिला पाण्डेय उर्मि

एक बार में विद्यालय, में पढ़ा रही थी वह भी बेटी के ऊपर चर्चा चल रही थी।एक छात्रा ने मुझसे पूछा मैडम बेटी और बहू में क्या अंतर है। मैंने उसे समझाया कि कुछ अंतर नहीं परंतु मैंने अंतर मान रखा है।आज कल तो समाज में बहू और बेटी को समान मानते हैं सही बात है बहू भी दूसरे के घर की बेटी है। मेरी एक बात ध्यान से सुनो क्या बहू अपनी मां की तरह सासू मां को मानतीं है नहीं कोई कोई मानतीं हैं और उनकी हर प्रकार से उन्नति होती है।इसी प्रकार कोई कोई सास भी क्या बेटी की तरह बहू को मानतीं हैं नहीं इसलिए मन में गलत भावना अपना पराया जो अपना लिया है यही कारण है कि हम बहू और बेटी में अंतर पैदा करते हैं।
वैसे तो देखा जाय तो बहू बहू होती है घर की लक्ष्मी उससे ही घर अच्छा लगता है। बहू सास ससुर का मान सम्मान आदर सत्कार करती है तो वह बहुत अच्छी लगती है परंतु आजकल घरों में कहीं कहीं बहू के द्वारा इतना सब करने पर भी सास ससुर देवर नन्द द्वारा बहू को सताया जाता है हमें यह विकार दूर करना है। बेटी बेटी होती है अपने मायके में वह मान्य पक्ष में होती है जो स्थान हम बहू को नहीं दे सकते।
बेटी जो कार्य माता पिता के कर देगी वह बहू नहीं कर पायेगी और जो काम बहू कर देगी वह बेटी नहीं कर पाएगी। दोनों को घर का सदस्य मानों और मिलकर रहो कितना आनंद आता है।
तुलसी दास जी ने कहा है कि-बहू लरिकनी पर घर आई। राखौ नैन पुतरि की नाईं।।
बहू के विषय में सोचिए कि वह अपना घर छोड़कर दूसरे के घर में आई है उसे घर का काम काज समझने में थोड़ा समय लगेगा उससे नाराज़ मत हो प्रेम से समझाइये।सब ठीक-ठाक हो चलता है। परंतु आजकल इतने ग़लत विचारों वाले लोग होते हैं कि बहू को दे-दे कर ताहिने उसे लड़ने को मजबूर कर देते हैं।
बहू को भी यह ध्यान देना चाहिए कि जिनके बेटे से तुम्हें सौभाग्य प्राप्त हुआ है उनका आदर सम्मान आज्ञा पालन करो कोई लड़ाई मत करो सोचो तुमसे उम्र में कितनी बड़ी हैं जो कहें उसे सुन लो।इस प्रकार यदि समाज चलने लगे तो बहू और बेटी में अंतर ही नहीं होगा।मां और सासू मां में कोई अंतर नहीं होगा।
बहू लक्ष्मी है घर की बेटी पूजनीय होती।
बहू तुम्हारे घर की शोभा बेटी दूजे घर की होती।
अपना पराया ख़त्म करो सबसे करो प्रेम व्यवहार।
खुशहाली घर में आएगी जिस घर में बहुओं का सत्कार।
उर्मिला पाण्डेय उर्मि कवयित्री मैनपुरी उत्तर प्रदेश