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हकिकत मे माँ —-सीमा शुक्ला चाँद

तस्वीर अपनी आज एक दो अपनी माँ के संग बस स्टेटस पर लगाकार
मना रहा है विश्व ये दिन उन्हें दो पल अपने यूँ नजदीक बस दिखाकर
रूलाता है वो बेटा बेटी बहू नाती पोता पोती भी नित ख्वाब में उसके आकर
करता करती नही है बातें बरस भर भी जो स्वंय को व्यस्त सा बताकर
रख देता है हर मान में सम्मान में उसे बस जो हासिये पर लाकर
मुस्कुरा रहा है आज उसे दिखावटी गले से भी लगाकर
ऐसे भी कई जनक हैं जो माँगते हैं भोजन कभी इस गली तो कभी उस गली नंगे पाँव जाकर
है कितने अजीब लोग वो भी जो मिठाई माँ को देते है आज के दिन उन्हें आश्रमों मे लाकर
कुछ ने तो देखो घर से नौकर भगा दिया है ले आए हैं वो माँ को उसके घर से यूँ बहलाकर
है आज के ये रिश्ते बस स्टेटसो तक सीमित रख दिया है हम सभी को एक व्यापारी ही बनाकर
स्वरचित ©द्वारा सीमा शुक्ला चाँद