मन और बुद्धि को अनुशासित करता ‘अध्यात्म’ — पल्लवी राजू चौहान

‘मन’ हमारे शरीर की ऐसी अवस्था है, जो कभी स्थिर नहीं रहती। मन का सीधा संबंध हमारी उन इच्छाओं से हैं, जो हमेशा हमारी आवश्यकताओं से जुड़ी होती है। आवश्यकताएँ हमारे जीवन की वो माँग जिसके बगैर इस जीवन का सुचारू रूप से चलना कठिन है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि हम अपने मन को कितना भी नियंत्रित करना चाहें, वह कभी नियंत्रण में आ ही नहीं सकता। हाँ, एक बात हो सकती है, हम यदि आवश्यकताओं को ही जरूरत के हिसाब से नियंत्रित करते हुए जीवन यापन करें, तो हम अपने मन को कुछ हद तक काबू में रख सकते हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि हमारे मन का सीधा संबंध हमारे दिल से है, जो कभी मानता ही नहीं है। वह अच्छे और बुरे दोनों स्थिति में व्याकुल हो जाता है। इस बात को हम इस प्रकार से समझने का प्रयास करेंगे। जब हमारे जीवन में बहुत अच्छा समय आता है, तो वह खुशी और आनंद से व्याकुल हो जाता है। इसके अतिरिक्त जब हम किसी समय दुखद परिस्थिति के कारण परेशान और तनाव ग्रस्त होते हैं, तब भी इसकी व्याकुलता कुछ ज्यादा ही बढ़ जाती है। यही कारण है कि दुख और सुख दोनों ही अवस्था में हृदय की गति समान एक समान अवस्था में रहती है। हृदय न ज्यादा सुख बर्दाश्त कर पाता है और न ज्यादा दुख बर्दाश्त कर पाता है। आप अपने मन को एक बार नियंत्रित करने के लिए सोच भी सकते हैं और कठिन प्रयास के द्वारा नियंत्रित भी कर सकते हैं, हृदय की गति कम या ज्यादा हो सकती है, परंतु आप इसे नियंत्रित नहीं कर सकते हैं। इसलिए कहते हैं न शांत मन ही हृदय की गति को शांत और सरल बनाए रख सकता है। यही कारण है कि अध्यात्म का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व है। वैदिक काल में अध्यात्म को एक विकसित विज्ञान के रूप में संबोधित जाता था। वैदिककाल में शिक्षा का मुख्य उद्देश्य ज्ञान को विकसित करना थाl और यह संपूर्णतः अध्यात्म से प्रेरित था। वैदिक काल के दौरान प्रश्नोत्तरी, वाद-विवाद और शास्त्रार्थ विधियों का विकास वैदिक काल में ही हुआ था। वैदिक काल में शिक्षा का माध्यम केवल संस्कृत हुआ करता था। उस वक्त वैदिक काल में गूढ़ विषयों पर ही उच्चतम स्तर पर वाद विवाद या शास्त्रार्थ हुआ करता था। उस वक्त भी प्राकृतिक दैवीय शक्तियों और अग्नि, इंद्र, सोम, वरुण, मित्र, रुद्र, विष्णु, यम, सूर्य जैसे देवी देवताओं की पूजा होती थी। अध्यात्म का विकास मोक्ष की प्राप्ति के लिए होता था।
आज के युग में अध्यात्म का विकास मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए किया जाता है। आज आध्यात्मिक परंपरा का प्रयोग व्यक्तिगत शांति और आंतरिक मन के विकास के लिए किया जाता है। यही कारण है कि अध्यात्म को मन और बुद्धि का अनुशासन भी कहा गया है।
लेखिका: पल्लवी राजू चौहान
कांदिवली, मुंबई