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पाप की कमाई — कमलेंद्र दाहमा

 

पाप की कमाई का सामान, रखकर इंसान शीश पर,
चल रहा है इंसान जीवन में, अपनी जीवन यात्रा पर |

आसान नहीं है, जीवन इंसान का जीना यहां पर,
जब पाप की गठरी धरीं हैं, इंसान के शीश पर |

ध्यान नहीं है इंसान को, ईश्वर का यहां पर,
खोज रहा है इंसान ईश्वर को, मंदिर, मस्जिद में यहां पर |

नुकसान की यात्रा करता है, इंसान यहां पर,
जब खुद ही खोया है खुद में, इंसान यहां पर |

मैं तो कल नहीं रहूंगा यहां पर,
मेरा गीत विधान ज़िन्दा रहेंगे यहां पर |

दुनियां में मुझे लोग याद करेंगे, कर्मों से मेरे यहां पर,
दुनियां में रह जाएगा मेरे पीछे, रचनाओं का संग्रह यहां पर |

मैंने जज्बातों में डूब कर लिखीं हैं, रचनाएं यहां पर,
मैंने दिल की गहराइयों से समझा है, इंसान का दर्द यहां पर |

मैं मुस्कुराते-मुस्कुराते एक दिन, विदा हो जाऊंगा यहां पर,
मेरी रचनाओं से याद रखेंगे, मुझे लोग यहां पर |

कमलेंद्र दाहमा
अलीगढ़, उत्तर प्रदेश

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