प्रेम कहानी- (पूरी तरह काल्पनिक कहानी) — मैत्रेयी त्रिपाठी

दुइ हिटलर मरे होईहे ,तब जाके तुम पैदा हुये हो,समझ लो क़सम खा के बोल रहें हैं ।
अरे पूनम! शांत हो जाओ आग काहें उगल रही हो ।
तो का करें आरती उतारें तुम्हारी,
बैठ जाते हो लाट साहब की तरह छत पर, ये लाओ वो लाओ,मेरे बाप ने बेटी ना ब्याही फ़्री फंड का नौकर भेजा है,दौड़ा लो जितनी मर्जी ।
“विनय” ने बड़ी शालीनता से पूनम का हाथ पकड़कर नीचे बिछी चटाई पर अपने साथ बिठाया।
देखो आज आसमान में भी पूनम का चाँद निकला है और उसकी #गुनगुनाती चाँदनी से समस्त व्योम आच्छादित है,कितनी अद्भुत छटा है।
प्रकृति ने मानव को अद्भुत संपदा प्रदान की है,पर मानव अपनी अंधी दौड़ में उसे देख ही नहीं पाता, और जब देखता है तब तक देर हो चुकी होती है ।
विनय-ठिठका सा देखता जाता है पूनम को,
अब ऐसे ना देखो मुझे,अकेले ही अपनी कल्पना की नायिका संग बैठ कर अपना उपन्यास पूरा करो और मैं चलूँ , नहीं तो तुम्हारी अम्मा पूनम को अमावस कर देंगी ।
विनय ने खीजते हुए कहा-ये अम्मा तुमसे इतना चिढ़ती क्यों हैं?
पूनम ने हँसते हुए कहा-प्रेम जो उन्होंने अपने वैवाहिक रिश्ते में वर्षों ढूँढा नहीं मिला ,वह तुमसे मुझे मिले सम्मान को भी प्रेम समझती है,पर यह नहीं समझती की कुछ शादियाँ सम्मान,त्याग,समझौता,लगाव पर भी आधारित होती है,प्रेम हो यह जरूरी नहीं ।
विनय अपलक देखता रहा पूनम को,कोई इतना सुलझा भी हो सकता है ? तुम तो इस गुनगुनाती चाँदनी की तरह अपने विचारों से उन्मुक्त हो, नहीं बन सकती मेरी नायिका,जो बाह्य प्रपंचों से घिरी है ।
(अरे पूनम-घर के काम होते नहीं,हँसी ठट्ठा करा लो बस-अम्मा की आवाज़)
पूनम ने पलटकर विनय से कहा-ए सुनो मैं भी एक दिन उपन्यास लिखूँगी, और तुम्हारी बरकटी तीसरी गर्लफ्रेंड मेरे उपन्यास की नायिका होगी और तुम्हारी अम्मा विलेन ।
उपन्यास सुपरहिट ।
दोनों के साथ चाँद भी आज ठहाके लगा रहा है।
मैत्रेयी त्रिपाठी (स्वरचित)