प्रकृति और पर्यावरण का संगम : वट सावित्री व्रत

ज्येष्ठ मास की अमावस्या सुहागिन स्त्रीयों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस दिन वट सावित्री का पर्व मनाया जाता है । इस दिन महिलाएं पति की लंबी आयु व तरक्की के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन देवी सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापिस लिए थे। इस व्रत में वट वृक्ष (बरगद) की पूजा की जाती है, कहा जाता है कि इस वृक्ष में ब्रह्मा , विष्णु और महेश तीनों का वास होता है तो इसकी उपासना से तीनों देवताओं का आशीष प्राप्त होता है।आज के युग में व्यस्तताओं में जहां रिश्ते अस्थाई हो खोते जा रहे हैं वहीं ऐसे पर्व पारंपरिक मूल्यों की याद दिलाते हैं।
वहीं दूसरी तरफ वट सावित्री को अगर हम वैज्ञानिक नजरिए से देखें तो इसके पीछे कई स्वास्थ और पर्यावरण से जुड़े हुए लाभ छुपे हैं क्योंकि बरगद का पेड़ छाया देने के साथ ही 24 घंटे ऑक्सीजन भी देता है,जो वातावरण को शुद्ध करता है । इसके पत्ते,फल, छाल, जड़ आदि का प्रयोग विभिन्न प्रकार की औषधियों के लिए भी किया जाता है। इसकी छांव में अगर ध्यान किया जाए तो मानसिक तनाव दूर होता है और शक्ति भी मिलती है। इस तरह से देखें तो महिलाओं का व्रत करके वट वृक्ष के नीचे पूजा करना एक नेचुरल थैरेपी है जो मन और तन दोनो को ऊर्जावान और सशक्त करती है। इस पूजा में कोई कर्म काण्ड नहीं होता बल्कि बड़े ही साधारण तरीके से मौसमी फलों का भोग लगाया जाता है और जल आदि से सिंचन कर वट वृक्ष की परिक्रमा की जाती है व गले लगाया जाता है। जो पर्यावरण संरक्षण का स्पष्ट संदेश देती हैं।
भारतीय संस्कृति में प्रकृति को ईश्वर का रूप माना गया है और यही कारण है जब हम ईश्वर की उपासना करते हैं तो प्रकृति इनसे अलग नहीं है। खासकर हिंदू उपासना में नदी ,वृक्ष,सूर्य,चंद्रमा,अग्नि,जल,वायु सभी को पूजा जाता है। भारतीय ऋषियों अथवा वेदों ने भी वृक्षों के महत्व को बताते हुए एक वृक्ष की तुलना मनुष्य के दस पुत्रों से की है। ऐसे में यह व्रत हमें प्रकृति के साथ संबंध स्थापित करने और उनकी रक्षा करने के लिए प्रेरित करता है।
संगीता झा “संगीत” (नई दिल्ली)