परोपकार सबसे बड़ा धर्म -प्रवीणा सिंह राणा प्रदन्या

परोपकार का अर्थ है दूसरों की निःस्वार्थ सेवा करना, उनके कष्टों को दूर करने का प्रयास करना। यह न केवल मानवीय गुण है, बल्कि प्रत्येक धर्म, संस्कृति और सभ्यता में इसे सर्वोच्च स्थान दिया गया है। वास्तव में, “परोपकार सबसे बड़ा धर्म” एक ऐसी उक्ति है जो मानव जीवन के उद्देश्य को स्पष्ट रूप से दर्शाती है।
जब कोई व्यक्ति बिना किसी स्वार्थ के दूसरों की सहायता करता है, तो उसमें ईश्वर के प्रति सच्ची श्रद्धा और मानवीय संवेदना प्रकट होती है। भूखे को भोजन, प्यासे को जल, रोगी को दवा, अज्ञानी को शिक्षा और दुखी को सांत्वना देना — ये सभी परोपकार के रूप हैं। एक छोटा-सा परोपकारी कार्य किसी की ज़िंदगी बदल सकता है।
हमारे महापुरुषों जैसे महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानंद, मदर टेरेसा आदि ने अपने जीवन को परोपकार में समर्पित किया। उन्होंने जाति, धर्म, भाषा और सीमाओं से ऊपर उठकर मानवता की सेवा की, जो आज भी प्रेरणा का स्रोत है।
परोपकार से न केवल समाज में सद्भाव और शांति फैलती है, बल्कि यह करने वाले व्यक्ति को भी आत्मिक संतोष मिलता है। एक परोपकारी व्यक्ति समाज की नींव को मजबूत करता है और अपने आचरण से दूसरों को भी प्रेरित करता है।
अतः हमें चाहिए कि अपने जीवन में परोपकार को स्थान दें, क्योंकि यही वह धर्म है जो हमें सच्चे अर्थों में “मनुष्य” बनाता है। परोपकार से बड़ा कोई धर्म नहीं।
प्रवीणा सिंह राणा प्रदन्या