प्रतिस्पर्धा — कविता साव

प्रतिस्पर्धा,जो व्यक्ति, राष्ट्र या यूं कहें कि जीव जंतुओं के बीच होने वाली वह प्रक्रिया जिसमें एक दूसरे के बीच होने वाली प्रतियोगिता,मुकाबला की भावना को उजागर करती है।एक व्यक्ति अपने जीवन में सफल होने के लिए संघर्ष की हर सोपान को पार करता है और सफल होता है।
प्रतिस्पर्धा हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है।ये हमें सक्रियता प्रदान करती है।हमारी भावनाओं, विचारों एवं व्यवहार को एक नया आयाम देती है।ये भावना तो बचपन से ही हमारे मन में घर जाती है।
जीवन के हर क्षेत्र में जैसे, विद्यालय की परीक्षा में अव्वल आने की,खेल के मैदान में एक दूसरे को हराने की,नौकरी प्राप्त करने की या पदवी प्राप्त करने की।
प्रतिस्पर्धा हमें जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है,खुद को परखने और लक्ष्य प्राप्त करना सिखलाती है।यही कारण है कि जीवन के हर क्षेत्र में प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है जो हमारी क्षमता,दक्षता,योग्यता, जैसे गुणों को उजागर करती है।
प्रतिस्पर्धा,रणक्षेत्र में रणनीति तैयार करने की,समाज में उच्च और सम्मानित पदवी प्राप्त करने की, मल्लयुद्ध में ताकत दिखने की, अर्थात् हर क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा की जरूरत है।
प्रतिस्पर्धा,कभी कभी सामाजिक रूप से लाभदायक ना होकर खतरे का रूप ले लेती है।व्यक्ति एक दूसरे को नीचा दिखाने, हराने,उससे आगे बढ़ने के चक्कर में खूंखार बन जाता है। ऐसे में उस व्यक्ति का जीवन संघर्षशील होते हुए भी समाज से अलग हो जाता है।
प्रतिस्पर्धा में हम अपने जीवन के बहुमूल्य रिश्तों को खोते चले जाते हैं।अपने जीवन का सबसे महत्वपूर्ण सुख चैन गंवाते चले जाते हैं।ऐसी सफलता का कोई अर्थ नहीं जिसमें परिवार,समाज और देश शामिल ना हो।अतः प्रतिस्पर्धा को हम उतना ही महत्व दें जितने
में सबका हित हो।
कविता साव
पश्चिम बंगाल