संस्मरण: एडमिन बना चौधरी — महेश तंवर

18 मई रविवार का दिन था। मैं खेत में पानी की टंकी और स्नान घर बनवाने में व्यस्त था ।जिसके कारण मोबाइल को सांयकाल 8:15 बजे तक देख नहीं पाया था। जब व्हाट्सएप देखा तो अनेक समाचार, सुविचार,व गुड मॉर्निंग आए हुए थे। उन्ही में एक ग्रुप से बधाईयों की लंबी कतार लगी हुई थी। डॉक्टर राजेंद्र यादव आजाद दोसा द्वारा रचित “अलमस्त कवि रामनिवास बायंला” इंदौर पत्रिका में प्रकाशित खबर लगी हुई थी। रामनिवास बायंला का नाम देखकर मैं बहुत-बहुत गदगद हुआ।
इस खबर को मैं भी तुरंत दो-चार दोस्तों के पास भेजा।जिनकी प्राय मैं चर्चा करता ही रहता हूं। चर्चा क्यों न करूं, रामनिवास बायंला जी मेरे साहित्य गुरु व रिश्ते में भाई साहब हैं। जिनकी छत्रछाया में मेरी साहित्य कलम का विकास हुआ।
खास बात तो यह है कि रामनिवास जी की साहित्य ख्याति देश-विदेश में फैली हुई है। ऐसे अलमस्त कवि को भला कौन बधाई नहीं देना चाहेगा। खैर मैं इस चर्चा को यहीं पर छोड़ता हूं। क्योंकि मुझे यहां अलमस्त कवि का यशोगान नहीं करना है। क्यों कि हमें तो चर्चा करनी है एडमिन साहब की।
अब मैं भी खुशी-खुशी ग्रुप में भाई साहब रामनिवास जी को बधाई का संदेश भेज दिया। मेरे द्वारा भेजा गया संदेश को भाई साहब पता नहीं पढ़े या नहीं। ग्रुप के कितने सदस्य मेरा संदेश देखे, पता नहीं, लेकिन ग्रुप एडमिन द्वारा मेरा बधाई संदेश तुरंत ही हटा दिया। शायद इसीलिए की एक साधारण व्यक्ति के द्वारा प्रतिष्ठित व्यक्ति को बधाई संदेश देने के लिए “गांव का चौधरी एडमिन साहब” से इजाजत नहीं ली। या फिर रामनिवास जी को मेरे द्वारा दिया गया संदेश रास नहीं आया होगा।
उक्त तथ्य से ज्ञात हुआ कि एडमिन साहब भी गांव का चौधरी होता है। जिससे बधाई के लिए भी इजाजत लेनी होती है। एडमिन साहब की विचारधारा का अभिनंदन।
महेश तंवर सोहन पुरा
नीमकाथाना (राजस्थान)