संस्मरण: मेरे कवि बनने की यात्रा — पालजीभाई वी राठोड़ ‘प्रेम’

मेरे कवि बनने की यात्रा की शुरुआत तो तब हो गई थी जब मैं मैत्री विद्यापीठ सुरेंद्रनगर पीटीसी के प्रथम वर्ष में था। जब मैं पढ़ता था तब हमारी संस्था में कई बार कवि सम्मेलन हुआ करता था। इस कवि सम्मेलन में कविता की रचना फरजियात करनी पड़ती थी।कवि सम्मेलन में मेरी स्वरचित रचना पेश किया करता था। तब से कविता रचना की यात्रा शुरू हुई।जब पढ़ाई पूरी हुई और प्राथमिक शिक्षक की नौकरी एक छोटा सा गांव में मिली वहां समय बहुत कुछ मिला करता था। मैं विविध तहेवारे, ऋतुऐं, प्रसंग, प्राकृतिक सौंदर्य, महान पुरुष विशेष जन्म दिन, निर्वाण दिन के बारे में कविता की रचना कीयाद करता था। शिक्षक होने के नाते छोटे बालक को पढ़ने में उपयोगी बालगीत, शैक्षणिक रचना भी रचता था।अभिनय के साथ बालक को गेय कराता था।इसी तरह मैं तितली, फूल, पत्ती, कली, पशु,पक्षी आदि का खूबसूरत वर्णन भी किया करता था।
अपने मन की कल्पनाओं को शब्दों में पिरो के मैं कविता बना लेता था। मेरी रचना सामयिक में प्रकाशित होती थी।छोटे बालक के लिए गुजराती भाषा में “हिचकें हिचो” काव्य संग्रह साहित्य अकादमी गांधीनगर की सहायता से प्रकाशित भी किया। इस काव्य संग्रह ने मुझे सुरेंद्रनगर जिला बेस्ट टीचर का एवोर्ड भी दिलाया। बहुत कुछ मान सम्मान भी दिलाया।
मेरे लिए कवि बनने की यात्रा बचपन से ही आरंभ हुई थी।जब मैं अपने आसपास की दुनिया को महसूस करना शुरू किया उसे शब्दों में व्यक्त करता था। रचना के माध्यम से मैंने अपने भीतर की भावनाओं और विचारों को व्यक्त करना सिखा है। आज भी कई साहित्य गृपो में मेरी रचना भेजता हूं।कविता केवल शब्दों का खेल नहीं बल्कि एक संवेदनशीलता और सामाजिक दायित्व का नाम है। मेरे लिए कविता मेरी नई सोच और दृष्टिकोण व्यक्त करने का एक सशक्त साधन है।
“नया भाष्य लिखने हेतु प्रत्येक मनुष्य का जन्म हुआ रहता है,
सीधी तरह उसे समझके चल पड़े तो टेढ़े बनने से बच पाएंगे।”
श्री पालजीभाई वी राठोड़ ‘प्रेम’
सुरेंद्रनगर (गुजरात)