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शिक्षा के आयाम — डॉ संजीदा ख़ानम शाहीन

सारांश- कोठारी कमीशन ने भारतीय शिक्षा के निम्न उद्देश्य निर्धारित किये हैः-
उत्पादन में वृद्धि करना।
सामाजिक एवं राष्ट्रीय एकता का विकास
जनता के सुदृढ़ बनाना
देश का आधुनिकीकरण करना
सामाजिक नैतिक तथा अध्यात्मिक मूल्यों का विकास।
भारतीय ज्ञान परम्परा स्वतन्त्रता बंधुत्व और विश्व शान्ति के सिद्धांतो को स्वीकार
करती हैः-
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के तथ्य को रेखांकित किया कि वेदो मे जलवायु
परिवर्तन सहित दुनिया के सामने आने वाली कई चुनौतियो का समाधान विद्यमान
है।
वल्लभाचार्य रामानन्द, कबीर, सूर, तुलसी, रामकृष्ण, परमहंस, स्वामी विवेकानन्द
जैसे विद्धानो के योगदान को अध्ययन हमें यह एहसास कराता है कि ज्ञान के
क्षेत्र में भारत ने दुनिया को बहुत कुछ दिया है।
प्रस्तावना- संस्कृत संस्कृति एवं भारतीय केवल मात्र शब्द नही अपितु भारतवर्ष
की प्राचीन शिक्षा परम्परा की आत्मीयता के भाव है। शिक्षा व्यक्ति के सर्वागीण
विकास, राष्ट्रीय प्रगति, सभ्यता एवं संस्कृति के उत्थान हेतु अनिवार्य है।
वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में भारतीय ज्ञान परम्परा की अनिवार्यता की आवश्यकताः-
प्राचीन गौरवमयी भारतीय ज्ञान परम्परा सम्पूर्ण विश्व को आलोकिंत करने वाली
है। प्राचीन भारतीय कला के साक्ष्य चारों वेदो वेदांग उपनिषद, श्रुति, स्मृति से
लेकर रामायण एवं श्री भमद भगवद् गीता में विद्यमान है।
भारतीय ज्ञान परम्परा क आलौक में राष्ट्रीय शिक्षा नीतिः-
15 लाख अध्यापको को भारतीय ज्ञान परम्परा का प्रशिक्षण भी देगा। भारतीय
ज्ञान परम्परा को वापस लाने की आवश्यकता है ताकि विद्यार्थियो को उनकी
आरम्भिक अवस्था से ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षण के साथ नैतिक व चारित्रिक गुणों
से युक्त किया जा सके।
निष्कर्षः-
प्रस्तुत शोध विश्लेषण से यह ज्ञात होता है कि वर्तमान भारतीय शिक्षा प्रणाली के
विकास के परिपेक्ष्य में राष्ट्रीय शिक्षा नीति की भूमिका उल्लेखनीय है। यह
विद्यालयी शिक्षा एवं उच्च शिक्षा में विद्यार्थियों के बहुआयामी विकास हेतु
आवश्यक सुधार प्रदान करती है। इसका मुख्य उद्देश्य प्रारंभिक बाल्यवस्था से
ही विद्यार्थी की देखभाल करना, शिक्षा संरचना मे और अधिक सुधार करना।
शिक्षण प्रशिक्षण को और अधिक प्रभावशाली बनाते हुए परीक्षा प्रणाली मे सुधार
करना एवं प्राचीन भारतीय ज्ञान प्रणाली मे निहित ज्ञान को नवीन पाठ्यचर्या मे
लाना है।

डॉ संजीदा खानम शाहीन

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