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सोशल मीडिया पर अश्लील कंटेंट के दुष्परिणाम — अनामिका दूबे निधि

 

आज के डिजिटल युग में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स, लोगों के दैनिक जीवन का अहम हिस्सा बन चुके हैं। ये प्लेटफॉर्म्स जहां एक ओर सूचना के आदान-प्रदान, रचनात्मकता, और सामाजिक संपर्क के सशक्त माध्यम बने हैं, वहीं दूसरी ओर इनका दुरुपयोग भी तेजी से बढ़ा है। विशेष रूप से अश्लील और आपत्तिजनक सामग्री का प्रचार-प्रसार सोशल मीडिया के दुष्परिणामों में सबसे गंभीर समस्या बनकर उभरा है।

अश्लील सामग्री की उपलब्धता और फैलाव

आज इंटरनेट की पहुँच गाँव-गाँव तक है और स्मार्टफोन हर हाथ में है। ऐसे में सोशल मीडिया पर अश्लील कंटेंट की उपलब्धता बेहद आसान हो गई है। कई बार यह कंटेंट अनजाने में सामने आ जाता है, और कई बार जानबूझकर खोजा जाता है। कुछ प्लेटफॉर्म्स पर अश्लील वीडियो, फोटोज़, मीम्स, या यहां तक कि लाइव स्ट्रीमिंग के माध्यम से भी इस प्रकार की सामग्री फैलाई जाती है।

दुर्भाग्यवश, यह सामग्री कम उम्र के बच्चों और किशोरों तक भी पहुँच रही है, जिससे उनके मानसिक और नैतिक विकास पर गहरा असर पड़ रहा है।

1. मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव

लगातार अश्लील सामग्री देखने से व्यक्ति की सोच और व्यवहार में विकृति आ सकती है। यह मस्तिष्क पर नकारात्मक प्रभाव डालता है, जिससे अवसाद, तनाव, अकेलापन और आत्मग्लानि जैसी समस्याएं उत्पन्न होती हैं। कई मनोवैज्ञानिक शोधों में यह स्पष्ट हुआ है कि अश्लीलता की आदत से व्यक्ति का ध्यान पढ़ाई, करियर और रिश्तों से भटक जाता है।

2. नैतिक और सामाजिक पतन

अश्लील सामग्री समाज में नैतिक मूल्यों के क्षरण का कारण बनती है। पारिवारिक वातावरण अशांत हो जाता है, रिश्तों में विश्वास की कमी आती है, और युवा पीढ़ी सही-गलत में फर्क करना भूलने लगती है। जब सोशल मीडिया पर यह सब आम हो जाता है, तो धीरे-धीरे समाज इसकी स्वीकार्यता की ओर बढ़ने लगता है, जो एक खतरनाक संकेत है।

3. यौन अपराधों में वृद्धि

अश्लील कंटेंट यौन कुंठाओं को बढ़ावा देता है, जिससे बलात्कार, छेड़छाड़, साइबर अपराध, और यौन शोषण जैसी घटनाएं बढ़ने लगती हैं। पोर्नोग्राफी की लत कई बार इंसान को कानून की सीमाएं पार करने पर मजबूर कर देती है। यह सिर्फ एक व्यक्तिगत समस्या नहीं, बल्कि सामाजिक और कानूनी संकट भी है।

4. किशोरों और बच्चों पर प्रभाव

बच्चे और किशोर मानसिक रूप से बहुत संवेदनशील होते हैं। जब वे अनजाने में या जिज्ञासा के चलते अश्लील कंटेंट के संपर्क में आते हैं, तो यह उनके सोचने, समझने और व्यवहार करने की क्षमता को प्रभावित करता है। वे अपने यौन और भावनात्मक अनुभवों को गलत तरीके से समझने लगते हैं, जिससे उनके भविष्य के रिश्ते और आत्मविश्वास प्रभावित होते हैं।

 

5. महिलाओं की गरिमा पर आघात

अश्लील सामग्री में महिलाओं को वस्तु के रूप में दिखाया जाता है, जिससे समाज में उनके प्रति दृष्टिकोण विकृत हो जाता है। यह महिलाओं की अस्मिता, स्वतंत्रता और सम्मान के विरुद्ध है। इसके कारण ऑनलाइन उत्पीड़न, अश्लील मैसेज, और मॉर्फ्ड इमेज जैसी समस्याएं आम होती जा रही हैं।

 

6. कानूनी दृष्टिकोण

भारत में आईटी अधिनियम, 2000 के तहत अश्लील सामग्री का प्रसार और उसे साझा करना अपराध है। इसके लिए कड़े दंड का प्रावधान है, जैसे जुर्माना, जेल की सजा आदि। इसके बावजूद, साइबर अपराधी आए दिन नए तरीके निकालते रहते हैं, जिससे कानून को और अधिक प्रभावी बनाने की आवश्यकता महसूस होती है।

 

निष्कर्ष

सोशल मीडिया एक ताकतवर साधन है, लेकिन इसका सदुपयोग करना हमारी जिम्मेदारी है। अश्लीलता के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए केवल सरकार या प्लेटफॉर्म्स की ही नहीं, बल्कि समाज, माता-पिता, शिक्षकों और स्वयं उपयोगकर्ताओं की भी अहम भूमिका है।

हमें युवा पीढ़ी को डिजिटल साक्षरता के साथ-साथ नैतिक शिक्षा भी देनी होगी। साथ ही, सोशल मीडिया कंपनियों को भी अपनी नीतियों को और कठोर बनाकर इस प्रकार की सामग्री को रोकने के प्रयास तेज करने होंगे। तभी हम एक स्वस्थ, सुरक्षित और सभ्य डिजिटल समाज की ओर अग्रसर हो सकेंगे।

अनामिका दूबे निधि

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