आईना_ डॉ सरिता चौहान

हर आईने में तुम झलकते हो बड़ी साफ।
पर मैं जब देखने जाती हूं आईना ही टूट जाता है।
हर आदमी शहर हो जाता है।
रोशनी रास्तों से नहीं आदमी से होकर गुजरती है।
कहानी किस्से एक -दूसरे के सुनाते रहते हैं।
अपनी कहानी तो मुंह में दबा लेते हैं।
जरा औरों की जुबानी अपनी कहानी तो सुनो।
अपनी अनसुलझी पहेलियां को लोगों तक पहुंचाओ।
हो सकता है मसले का कोई हल निकल आए।
तेरे चेहरे की मुस्कुराहट वापस लौट आए।
मैं तुझ में एक मुकम्मल जहां ढूंढती हूं।
पर जब भी देखती हूं तू कतरा कतरा नजर आता है।
बस ऊपर से मुस्कुराता है।
क्या है तेरा हाल? क्यों अंदर से धुआं धुआं रहते हो।
ब्रांड का साबुन लगाकर बाहर से चमकते हो।
अपने भीतर के कचरे को साफ करने की कोई तरकीब ढूंढो।
आमजन से मुखातिब हो लो ।
जरा उनकी आंखों में आंखें डाल कर बोलो।
मैं भी हूं तुम्हारे लिए एक कदम आगे चलने वाला।
मयस्सर है जिंदगी तो तेरा साथ देने वाला।
गर्व से उनकी आंखें चमक जाएगी।
जिनके सामने तेरे होठों से यह बात निकल आएगी।
मैं भी खुश हूंगी तुझ पर नाज करूंगी।
तुझे कुछ अपनी फरियाद करूंगी।
बताऊंगी प्यार की कीमत सिर्फ प्यार ही होता है।
जो भी हो जिस हाल में हो यार तो यार ही होता है।।
स्वरचित
डॉ सरिता चौहान पीएम श्री एडी राजकीय कन्या इंटर कॉलेज गोरखपुर उत्तर प्रदेश।