अंधविश्वास — अलका गर्ग

मेरे विचार से जब किसी बात को तर्कसंगत तरीक़े से समझा या समझाया नहीं जाता तो वही अंधविश्वास का रूप ले लेती है।
पीढ़ी दर पीढ़ी से चली आई प्रथाओं के रूप अज्ञानता और अनपढ़ होने कारण बिगड़ते जाते हैं।
आदिकाल में जो भी नियम बनाए गए वे वैज्ञानिकता से परिपूर्ण मानव जाति की भलाई के लिए ही थे।परंतु कालांतर में लापरवाही से उनकी महत्ता का ज्ञान घटता गया और अंधविश्वास का नाम दे कर उनका उपहास भी किया गया।
नई पीढ़ी का उच्शृंखल स्वभाव अपने बड़ों से किसी पूजा,आयोजन,
मनाही का कारण पूछने और सही जबाब ना पा कर शंका युक्त जबाब मिलने पर सब नियमों को अंधविश्वास का नाम देता गया।युवा वर्ग की जिज्ञासाओं की संतुष्टि नहीं होने के कारण वह उदण्ड होता गया और कालांतर में उसे अंधविश्वास का नाम दे कर मानने से इंकार करने लगा।ग्रहण में खाना पीना,सोना निषेध,दिन छिपने के बाद नाखून नही काटना,बिस्तर पर नही खाना,झाड़ू नहीं लाँघना और भी अनगिनत..पर सबके पीछे एक न एक ठोस वजह है।जिससे हम अनिभिज्ञ हैं इसलिए इन्हें अंधविश्वास कहते हैं।
हम लोग पुरानी परम्पराओं की तो हँसी उड़ा कर उन्हें अमान्य करते आये हैं परंतु कितनी ही विभत्स नई परम्परायें अज्ञानतावश बना लिए हैं ।कुछ के बारे में सुन देख कर हँसी और कुछ पर ग्लानि होती है।कई प्रांतो में तो अंधविश्वास के नाम पर ज़िंदगी से खिलवाड़ किया जाता है..ख़ास कर बच्चों की।रोंगटे खड़े हो जाते हैं यह सब देख सुन कर।
ख़ैर किसी तथ्य को अंधविश्वास करार करने से पहले जरूर ही उस की तह में जा कर तय करना चाहिए कि यह अज्ञानतावश किसी अत्यंत उपयोगी और हितकारी नियम का बिगाड़ा हुआ रूप तो नहीं…!!
अलका गर्ग, गुरुग्राम