बात कड़वी है, पर सच है — पल्लवी राजू चौहान

इस जीवन में व्यक्ति रिश्तों से जुड़ा अवश्य होता है, लेकिन कभी कभी वह स्वयं को अकेला पाता है। इसका कारण यह है कि जन्म के साथ रिश्ते जरूर बनते हैं लेकिन उसकी भी एक तय सीमा होती है। इसमें स्वार्थ की भूमिका अहम है। आजकल संवेदना, करुणा और माया के लिए कोई स्थान नहीं है। इन भावों की जगह संपूर्णतः व्यावहारिकता ने ले ली है। आज के समाज में रिश्ते भी व्यावहारिकता के भेट चढ़ चुकी है। आजकल का जमाना तो ऐसा हो गया है कि लोग रिश्ते भी सोच समझकर निभाते हैं। किसके साथ ज्यादा रिश्ता रखना है, या किसके साथ कम रिश्ता रखना है। रिश्तों को नापने वाला माप धन है। जिसप्रकार मधुमक्खी फूलों से रस निकालकर शहद बनाती है, ठीक उसीप्रकार लोग उन्हीं की तरफ ज्यादा खींचे जाते हैं, जहाँ से उन्हें फायदा होता है। कहावत है न जब पेट भरा होता है, तो खाने के लिए सभी पूछते हैं। अर्थात, सुख का अनुभव तब होगा, जब आप किसी भूखे को खाना खिलाएंगे। आज के जमाने में लोग अपनों को ही नजरअंदाज कर देते है, रिश्ते उन्हीं से निभाए जाते हैं, धन, संपत्ति और यश से परिपूर्ण होता है। किसी भी कारणवश यदि आप संपन्न व समृद्ध परिवार की रेखा से नीचे उतर गए, तो लोगों के ताने, उलाहना भर पेट मिलेंगे। लोग अपनी कमजोरी छुपाने के लिए आर्थिक तंगी और दिमागी तनाव के कारण जब घुट घुट कर मर जाते हैं, तब उसके बाद यह समाज न जाने कहाँ से जाग उठता है। उनका एक ही कथन होता है, वे तुरंत एक ही बात कहते हैं, “अरे, भाई पहले बताना था, हम कुछ न कुछ रास्ता निकालने में मदद करते। अरे, यह तो बहुत ही भला आदमी था। ऐसे लोग आजकल मिलते कहाँ है?” एक बार व्यक्ति दुनिया से चला गया, तो उसके बाद उस मृत व्यक्ति के सारे अवगुण गुण में परिवर्तित हो जाते हैं। जब वह जीना चाहता है, तो लोग उसे जीने नहीं देते हैं। उसे जीते जी ही मार देते हैं और जब वो मर जाता है, तो गायों और कौओं को श्राद्ध का भोजन खिलाते हैं। जब वह जीना चाहता है, तो उसे कोई जीने नहीं देता है। मरने के बाद हाय हल्ला इतना मचाएंगे कि उनसे बड़ा हितैषी कोई नहीं है। आपके अपने हितैषी वहीं होते हैं, जो बुरे वक्त में आपके सामने ढाल बनकर खड़ा हो? एक सच्चा मित्र ही सच्चा हितैषी बन सकता है, रिश्ते तो संबंधों के बाजार के मोल भाव में ही उलझकर रह गए है। यह बात कड़वी है, पर सच है।
लेखिका: पल्लवी राजू चौहान
कांदिवली, मुंबई