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दिल की कलम से — मंजू शर्मा “मनस्विनी”

 

पक्षियों को उड़ने के लिए पंखों की जरूरत होती है। लेकिन मन तो बिना पंख लगाये ही सारा जहांँ घूम लेता है और ये भी अटल सत्य है, हम जिस तरफ से मन हटाना चाहते हैं, ये पागल मन उसी तरफ आकर्षित होता जाता है।
संगीता ने ऐसे ही एक किस्से के बारे में विनिता से कहा… “विनिता याद है वो स्कूल का अंतिम दिन, जिस दिन हम सब बिछड़ने वाले थे ” “हाँ, याद है ” विनिता ने कहा। “बिछड़ने के गम में कैसे हम सब दोस्त नम आँखों से एक दूसरे से अलविदा कह रहे थे और वो लड़का याद है, जो कोने में खड़ा अपलक पागलों के जैसे मुझे ही देखे जा रहा था। ….आकाश, मुझे बहुत चाहता था। मुझे भी वो अच्छा लगता था। ….उस दिन तो ऐसे देख रहा था जैसे वो आखिरी बार मुझे देख रहा हो। जानती हो विनिता इतने सालों बाद उसने फेसबुक में फ्रेंड रिक्वेस्ट भेजा है ” संगीता लगातार बोले जा रही थी। “तुमने एक्सेप्ट किया क्या “…” हाँ, कर लिया यार। “अब वो रोज चैटिंग करता है, इतने सालों बाद, उससे चैटिंग करते वक्त मन में अजीब सी गुदगुदी होने लगती है। …. जैसे कल ही की बात हो, स्कूल के दिन फिर एक-एक कर याद आने लगे। …. दरवाजे पर बजी घंटी ने संगीता की तंद्रा को तोड़ा, “विनिता, तुमसे बाद में बात करूँगी ” कह कर संगीता ने दरवाजा खोला। देखा, थके हारे मोहित खड़े थे। मोहित मेरे पति, सोफे पर बैठते ही उन्होंने आवाज लगाई “संगीता चाय बनाना ”
मोहित को चाय देकर मैं भी घर के काम निपटाने लगी।
रात को जब चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था, मन उसी के किस्से गुनगुना रहा था। कब नींद आ गयी पता ही नहीं चला। अब तो रोज का ये किस्सा बन गया। पता नहीं क्यूँ ? उसके मैसेज का मुझे भी इंतजार रहता। ऐसे ही एक दिन उसने मेरे शहर आने का मैसेज किया। उसने मुझे एक कैफे में बुलाया। मैं भी तैयार होकर निर्धारित समय से पहले पहुंचना चाहती थी। इतने सालों बाद आकाश से मिलने की उत्सुकता भी थी या यूँ कहूं कि किसी अनजाने वाकये के कारण मेरे पैर घबराहट में आगे बढ़ ही नहीं रहे थे। मन में कयी तरह के सवाल उथलपुथल मचा रहे थे। कहीं मैं अनजाने में ही मोहित को धोखे में तो नहीं रख रही, नहीं, नहीं, मैं तो सिर्फ मिलने जा रही हूँ।
वहाँ पहुंचते ही देखा, आकाश पहले से ही मौजूद था।…उसने मेरी पसंदीदा रंग की शर्ट पहनी थी। जैसे-जैसे कदम बढ़ा रही थी, मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था। करीब पहुंचने पर उसने हल्की मुस्कुराहट से मेरा स्वागत किया। …अचानक मेरी नजर उसके पास बैठी एक सुंदर सी महिला पर पड़ी।….”संगीता! इनसे मिलो, ये मेरी पत्नी नीता “।…संगीता ने औपचारिकता निभाते हुए नमस्कार किया और हाल-चाल पूछा ।
अच्छा लगा उनसे मिलकर…खुशी भी हुई आकाश को आगे बढ़ता देख। अपने दिल के एक कौने में आकाश को जिंदा रखा था । इसीलिए एक मिला-जुला सा एहसास मन में टकराने लगा।
आज जो आवाज़ टकराई उसकी आवाज सिर्फ मैंने सुनी….! और बड़े ही बेमन से मुस्कुराई।
लेकिन नीता से मिलकर, मन में जो घबराहट थी वो अब कम हो गई ।

मंजू शर्मा “मनस्विनी”

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