जगन्नाथ रथ यात्रा – आस्था, परंपरा और संस्कार सनातन को समर्पण : आलेख — डॉ इंदु भार्गव जयपुर

जगन्नाथ रथ यात्रा…
यह सुनते ही मन में श्रद्धा की लहर दौड़ जाती है। यह केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, भक्ति और समर्पण की पराकाष्ठा का उत्सव है। हर वर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को उड़ीसा केपुरीनगर में आयोजित होने वाली यह यात्रा विश्व प्रसिद्ध है, जिसमें भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा अपने भक्तों के बीच नगर भ्रमण पर निकलते हैं।
रथ यात्रा का इतिहास और महत्व
जगन्नाथ रथ यात्रा की परंपरा सैकड़ों वर्षों पुरानी है। मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ स्वयं अपने भक्तों के बीच आकर दर्शन देना चाहते हैं। इसी उद्देश्य से वे अपने भव्य रथों पर सवार होकर
श्रीगुंडिचा मंदिर तक की यात्रा करते हैं। यह यात्रा लगभग 3 किलोमीटर की होती है और लाखों भक्त इसे देखने के लिए उमड़ पड़ते हैं।
यह पर्व न केवल हिन्दू आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह यह दिखाता है कि ईश्वर केवल मंदिरों में नहीं, अपने भक्तों के बीच रहना चाहते हैं।
रथों की विशेषता
तीनों रथों का निर्माण हर वर्ष नए सिरे से विशेष प्रकार की लकड़ियों से किया जाता है:
भगवान जगन्नाथ का रथ – नाम नंदिघोष, 16 चक्कों वाला, लाल-पीला रंग
बलभद्र का रथ – नाम तालध्वज 14 चक्कों वाला,
लाल-नीला रंग सुभद्रा का रथ– नाम दर्पदलन 12 चक्कों वाला, लाल-काला रंग
रथों को हज़ारों भक्त रस्सियों से खींचते हैं और इसे खींचना अत्यंत पुण्य माना जाता है। यह दृश्य अद्भुत होता है — मानव समुद्र में श्रद्धा की लहरें उमड़ पड़ती हैं।
आध्यात्मिक संदेश
जगन्नाथ रथ यात्रा केवल एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि यह हमें विनम्रता, सेवा और भक्ति का पाठ पढ़ाती है। जब भगवान स्वयं रथ पर बैठकर नगर में आते हैं, तो यह संकेत होता है कि – ईश्वर दूर नहीं हैं, वे हमारे बीच ही हैं।
विश्व में पहचान:
पुरी की रथ यात्रा की भव्यता इतनी प्रसिद्ध है कि इसकी झलक अब विदेशों में भी –
देखने को मिलती है — लंदन, न्यूयॉर्क, मॉरीशस, बांग्लादेश आदि देशों में भी यह उत्सव श्रद्धा से मनाया जाता है। इस आयोजन में धर्म, जाति, भाषा या सीमा की कोई दीवार नहीं होती — सब एक ही भावना से जुड़ जाते हैं।
सार :
“जगन्नाथ रथ यात्रा…” केवल एक आयोजन नहीं, यह भक्ति की चलती फिरती मिसाल है। यह पर्व हमें जोड़ता है — ईश्वर से, संस्कृति से और एक-दूसरे से। इसमें न कोई अमीर है, न गरीब — सब भगवान के रथ के नीचे एक समान हैं। यही तो है भारत की आत्मा।
डॉ इंदु भार्गव जयपुर