क्या समृद्धि एवं विकास के लिए हिन्दी आवश्यक है ? — अलका गर्ग,गुरुग्राम

इस विषय पर सहमत और असहमत,दो बड़े वर्ग सामने आते हैं।एकमत होने वालों की संख्या अभी भी कुछ कम ही प्रतीत होती है।सहमत वर्ग का मानना है कि जब हिन्दी हमारी भाषा है और देश हरेक वर्ग इसे समझता और बोलता है तो इसको हर क्षेत्र में अपनाने में दिक़्क़त कैसी ?
ग्रामीण आदिवासी या पिछड़े इलाक़ों में रहने वाले लोग भी हिन्दी आसानी से समझ लेते हैं और टूटी फूटी बोल भी लेते है।जब वे उच्च शिक्षा या नौकरी और व्यवसाय के सिलसिले शहरों में आते हैं तो शहर के लोगों की अपेक्षा उच्च क्रिया
शीलता और कर्मठता होने के बावजूद सिर्फ़ अंग्रेज़ी में कमजोर होने के कारण अपने को असहज पाते हैं ।वे हीनता का शिकार होते हैं और अपना आत्मविश्वास खो बैठते हैं ।
अगर इस पहलू से देखा जाये तो कार्यालयों,विद्यालयों,कारख़ानों,
बैंकों,चिकित्सा,व्यापार सभी के क्षेत्र में हिन्दी सहायक ही सिद्ध होगी।गाँव देहातों में से असाधारण प्रतिभायें निकल कर आयेंगी और समाज की समृद्धि और विकास में सहायक होंगी।
असहमत वर्ग के लोग हिन्दी को विकास और समृद्धि के मार्ग में बाधा मानते हैं।उनके हिसाब से हिन्दी वैश्विक स्तर पर प्रचलित नहीं है।उसका सीमित क्षेत्र ही उसकी क्रियाशीलता में बाधा है।विस्तृत भाषा शैली,कठिन व्याकरण अक्षरों की बनावट इस मत को मानने वालों को परेशान करती है।उन्हें हिंदी लिखने में गति अवरोध लगता है।अंग्रेज़ी के शब्दों की पाठ्यक्रम,
कार्यालयों और रोज़मर्रा की बोलचाल में इतने गहरी पैंठ है कि उनकी स्थान पर हिन्दी शब्द ढूँढना और बोलना उन्हें विकास की गतिशीलता को रोकना लगता है।तो इस मतानुसार तो हिन्दी भाषा सुमधुर,गुणवत्तापूर्ण,सशक्त हमारे देश की भाषा होते हुए भी समाज की समृद्धि और विकास की गति को धीमा कर सकती है।
इस विषय पर एकमत वही वर्ग है जिसकी हिन्दी पर अच्छी पकड़ है।इन लोगों को हिन्दी सरल,
सुबोल जन जन की भाषा लगती है।लगभग दो शताब्दी की ग़ुलामी में अंगेजी भाषा हमारे ऊपर इस कदर हावी हो गई कि आज़ाद होने के बाद भी हम अंग्रेज़ी से आज़ाद नहीं हो सके।किसी भी क्षेत्र में प्रयोग होने वाले अंग्रेज़ी के शब्दों के लिए हिन्दी शब्द,हिन्दी के अपरिमित शब्दकोष में हैं।परंतु आज़ादी के बाद चार पीढ़ी बदल जाने पर भी,उन शब्दों को ढूँढना और फिर व्यवहार में लाना अभी तक संभव नहीं हो सका।हमारी शिक्षा प्रणाली भी हिन्दी के न्यूनतम प्रयोग के साथ तैयार की गई है।
हिन्दी समाज की समृद्धि और विकास में सहायक है,किसी भी रूप में बाधक नहीं।यह हर दिशा,
जाति,वर्ग के लोगों को अपनी बात समझाने,योजना बनाने विचार विमर्श करने में बहुत मदद करेगी।जिससे कार्य प्रणाली और अधिक सुगम,
सरल और गतिशील होगी।
अब बदलाव की बयार बहने लगी है।उम्मीद है अगले कुछ वर्षों में हमारी राष्ट्र भाषा को वह दर्जा मिलेगा जिसकी वह हक़दार है।
विकास और समृद्धि में इसका योगदान सभी को नज़र आने लगेगा।
अलका गर्ग,गुरुग्राम