पर्यावरण — प्रवीणा सिंह राणा प्रदन्या

हर सुबह जब सूरज उगता है और उसकी किरणें धरती को आलोकित करती हैं, तो वह केवल रोशनी नहीं देती, बल्कि जीवन का संदेश भी देती हैं। पेड़ों की हरियाली, नदियों की कलकल, पक्षियों का कलरव—ये सब मिलकर उस पर्यावरण की रचना करते हैं, जिसमें हम साँस लेते हैं, जीते हैं, और बढ़ते हैं।
पर्यावरण केवल प्रकृति का दृश्य पक्ष नहीं है, यह हमारी साँसों में बहती हवा, हमारे खेतों को सींचती वर्षा, और हमारे आँगन में खिला हर फूल है। यह वो मौन साथी है, जो हमारे साथ चलता है बिना कोई शिकायत किए।
लेकिन विकास की तेज़ रफ्तार, आधुनिकता की चकाचौंध और अनियंत्रित उपभोग नसे पर्यावरण संतुलन डगमगाने लगा है। नदियाँ सूख रही हैं, जंगल सिमट रहे हैं, और मौसम अपनी पहचान खोने लगा है।
इस पर चिंता करना पर्याप्त नहीं है, हमें जागरूक होकर जिम्मेदारी निभानी होगी।
हमें पेड़ लगाने होंगे, जल और ऊर्जा को समझदारी से इस्तेमाल करना होगा, और यह समझना होगा कि जब हम प्रकृति का आदर करते हैं, तो वास्तव में हम अपने ही जीवन की रक्षा करते हैं।
पर्यावरण की रक्षा कोई आंदोलन नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक शैली होनी चाहिए। जब एक बच्चा किसी पौधे को पानी देता है, तो वह केवल हरियाली नहीं सींचता, वह भविष्य को हरा करता है।
इसलिए, आइए हम सब मिलकर एक वादा करें—प्रकृति से मित्रता करेंगे, उसके घावों को भरेंगे और अपनी पृथ्वी को फिर से उस रूप में देखेंगे, जैसी वह कभी हुआ करती थी—स्वच्छ, शांत और सुंदर।
प्रवीणा सिंह राणा प्रदन्या