राजकुमारी कुंती — कविता साव

महाभारत की मुख्य नायिका ,कुंतीभोज की दत्तक पुत्रीऔर राजकुमार पांडु की पत्नी कुंती को कोई कैसे भूल सकता है।
एक बार ऋषि दुर्वासा कुंतीभोज के यहाँ पधारे थे।
राजा ने उनका सहर्ष स्वागत किया ,उनकी आवभगत में कोई कमी ना हो इस बात का पूरा ध्यान रखा।राजकुमारी
कुंती ने भी ऋषि दुर्वासा की तन मन से सेवा किया। कुंती
की सेवा से प्रसन्न होकर ऋषि ने उन्हें देव आह्वान का एक
मंत्र दिया जिसका उपयोग करके किसी भी देवता को बुलाया जा सकता है।
इस वरदान को पाकर कुंती बहुत खुश थी।एक दिन उसने इस वरदान को आजमाने के लिए सूर्य देव का
आह्वान किया और सूर्य देव प्रकट हो गए।उन्होंने वरदान में कुंती को कर्ण दिया। चूंकि कुंती कुमारी थी और लोक लाज की मारी थी,इसलिए कर्ण को जन्म देते ही उसका
त्याग करना पड़ा।
इतना ही नहीं,कुंती जब व्याह कर हस्तिनापुर आई तो पता चला कि राजकुमार पांडु एक श्रापित व्यक्ति हैं,जिन्हें स्त्री संभोग से वंचित रहने का श्राप मिला था।
एक बार विस्मृत पांडु ने स्त्री संभोग किया और मृत्यु को
प्राप्त हुए।इस दुर्घटना ने कुंती को वैधव्य जीवन से पीड़ित किया।
इतने पर ही व्यथा ने पीछा नहीं छोड़ा।कहने को तो कुंती हस्तिनापुर की रानी थी परंतु अधिकारों से वंचित अपने पुत्रों और कुलवधु द्रौपदी के साथ बारह वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास भी झेली।
वनवास से वापस जब लौटी तो शुरू हुआ कुरुक्षेत्र का युद्ध जहाँ अपने पुत्र कर्ण को अर्जुन के विरुद्ध
देख हृदय काँप उठा,किसे विजय का वरदान दे और किसे
मृत्यु का अभिशाप।आखिरकार अर्जुन द्वारा कर्ण की मृत्यु
होती है जो कुंती के लिया असहनीय हो जाता है।कुंती कुंठित हो जाती है ,लेकिन जो राज वर्षों से गुप्त था आज
उजागर हो गया था।
ऐसे कई यातनाएं कुंती ने सही,लेकिन कभी
हताश नहीं हुई,बल्कि दृढ़ता पूर्वक अपने कर्तव्यों का पालन किया।कुंती एक ऐसी स्त्री थी जो धैर्यपूर्वक हर चुनौतियों का सामना करती रही।
कविता साव
पश्चिम बंगाल