यात्रा संस्मरण : आपदा में संयम ही बचाव – राजेश कुमार ‘राज’

मेंरी बड़ी बहन बाला देवी लगभग प्रत्येक वर्ष एक अनुबंधित निजी बस से हरिद्वार (उत्तराखंड) से बागड़ (राजस्थान) की यात्रा का आयोजन करती हैं. इस कार्य में मेरा भांजा रितेश अपनी माँ का भरपूर हाथ बटाता है और यात्रा में साथ रहकर सभी श्रद्धालुओं का ध्यान रखता है. यह यात्रा हरिद्वार से शुरू होकर अपने पहले धार्मिक स्थल गोरख टीला (जिला हनुमानगढ़, राजस्थान) पहुँचती है. गोरख टीले पर गुरु गोरक्षनाथ जी का मंदिर है. यहाँ दर्शन, पूजा आदि कर श्रद्धालु समीप ही स्थित लोक देवता जाहरवीर गोगाजी महाराज (जिन्हें पुराने समय में जाहरपीर के नाम से पुकारा जाता था) की समाधि के दर्शन करते हैं. तत्पश्चात बस श्रद्धालुओं को लेकर राजस्थान के चुरू जिले में स्थित ददरेवा धाम की ओर प्रस्थान करती है. ददरेवा लोक देवता जाहरवीर गोगा जी चौहान का जन्मस्थल है. ददरेवा धाम में गुरु गोरक्षनाथ और जाहरवीर गोगा जी महाराज के दर्शन अर्चन करने के पश्चात अनुबंधित बस श्रद्धालुओं को लेकर हरिद्वार वापस लौट आती है.
घटना लगभग आठ या दस वर्ष पुरानी है. मैं, मेरा पुत्र रजत, मेरी बड़ी बहन बाला देवी और मेरा भांजा रितेश श्रद्धालुओं से भरी बस से बागड़ यात्रा से वापस हरिद्वार आ रहे थे. रात का समय था. जोरदार बारिश हो रही थी. लगभग सभी यात्री नींद में थे. हरियाणा में सफीदों कस्बे से बाहर निकलते ही हमारी बस जबरदस्त हिचकोला खाकर सड़क के बायीं ओर एक पेड़ से टकरा गयी. गाड़ी रुक गयी. हुआ यूं कि सामने से एक तेजी से आ रहे बेकाबू ट्रक से बचाव करते हुए ड्राईवर ने बस को एकदम बायीं ओर मोड़ दिया. बस पेड़ से टकराकर रुक गयी. लेकिन ये क्या? बस तो बायीं तरफ स्थित एक तालाबनुमा संरचना के किनारे पर झूल रही थी. बस का अगला बायाँ पहिया तालाब के एक हिस्से पर झूल रहा था. कोई जरा भर भी हिलता तो बस हिचकोले खाने लगती. श्रद्धालु चीख-पुकार कर रहे थे. भगवान से जान बचाने की गुहार लगा रहे थे. लेकिन किसी को भी समझ नहीं आ रहा था कि ऐसी स्थिति में यात्रियों को बस से सुरक्षित बाहर कैसे निकालें. तभी मुझे कर्तव्यबोध हुआ. अपने प्रशिक्षण और तजुर्बे के आधार पर मैंने स्थिति को अपने नियंत्रण में लेने का निर्णय कर लिया. पहले सभी को शांत होकर बैठ जानने के लिए कहा. जब यात्री शांत हो गए तो मैंने बायीं तरफ की सीट्स पर बैठे सभी यात्रियों को एक-एक करके धीरे-धीरे सावधानीपूर्वक बस की दायीं ओर वाली सीट्स की तरफ आकर खड़े होने के लिए आदेशित किया. एक-एक करके सभी यात्री दायीं तरफ आ गए. फलस्वरूप बस संतुलित हो गयी और उसने बायीं तरफ हिचकोले खाना बंद कर दिया. तत्पश्चात मैंने ड्राईवर से कहा वह धीरे से अपनी सीट से उठ कर बाहर निकल जाये ताकि ड्राईवर सीट की तरफ से यात्रियों को बाहर निकाला जा सके. ड्राईवर ने ठीक वैसा ही किया. मेरा भांजा रितेश और मेरा बेटा रजत भी ड्राईवर सीट की तरफ से बाहर निकल कर यात्रियों को उतरने में मदद करने के लिए तैनात हो चुके थे. पहले छोटे बच्चों को सावधानी पूर्वक ड्राईवर के दरवाजे से उतारा गया, उनके बाद महिलाओं को उतारा, फिर अन्य सभी को उतारा और सबसे अंत में मैं और मेरी बहन बस से उतरे. सब यात्रियों को सकुशल देख मेरी जान में जान आई.
बस खाली करने के बाद हमने स्थिति का जायजा लिया. बस के बायीं तरफ गहरा जल भराव था किन्तु रात होने के कारण यह अंदाजा नहीं लग पाया कि वह कोई तालाब था या वर्षा की वजह से जल भर गया था लेकिन था बहुत गहरा. यदि उसमें बस गिर जाती तो कुछ महिलाओं और बच्चों की जान की हानि तो हो ही सकती थी. जब भी इस घटना को याद करता हूँ तो मुझे अपार रोमांच और संतुष्टि का अनुभव होता है कि मैं आपदा के समय संयमित रह कर सभी यात्रियों को बस से सुरक्षित बाहर निकालने में सहायक सिद्ध हुआ. यह घटना ‘आपदा में संयम ही बचाव’ की सीख देती है।
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