आलेख- किन्नर – डॉ संजीदा खानम शाहीन

किन्नरो को समाज में हेय की दृष्टि से देखा जाता है ।किन्नरों का जीवन निरामय है। इनको समाज में पसंद नहीं किया जाता।यह अगर किसी के घर पैदा हो जाए तो समाज से बेदखल
कर दिया जाता है इनको समाज में निम्न स्तर पर रखा जाता है। जिसके
घर पैदा होते मातम हो जाता । उस बच्चे को किन्नर समाज में दे दिया जाता है । ना यह महिला कहलाते न यह पुरुष।
इनका लिंग में परिवर्तन होता ।
ये अगर किसी के द्वारा बनाए गए हो तो इनको लिंग परिवर्तन करना पड़ता है। सवा मन कत्था खिलाकर इनका लिंग कटवा दिया जाता ।और हार्मोन
परिवृत के लिए महिलाओं वाली ट्रीटमेंट लेकर महिलाओं की लचक अदाएं सब कुछ चाल ढाल सब परिवर्तित कर लेते है ।वेशभूषा परिधान की बात करे तो साज ,सज्जा
बनना संवरना इनको खूब भाता है।
ये गाना बजाना करते है ।
खुद को सुंदर दिखाने के लिए तरह तरह का मेकअप करते है ।
स्तन बढ़ाने के लिए ये चिकित्सा
पद्धति का उपयोग कर ईलाज कराते है। अपने बालों को तरह तरह से सजाते बनाते है। किन्नर समाज में
सबसे वरिष्ठ किन्नर गुरु मां कहलाता है
सब छोटे किन्नर गुरु मां का कहा मानते है ।इनके काम, समाज में, जब भी किसी के घर बच्चा पैदा हो तो पहुंच जाते बधाई लेने गाने बजाने दुआएं देने। किसी की शादी ब्याह में भी जाते । नाचते खूब अदाएं बनाते।
यह इनका नित्य कर्म होता है ।
ये समाज इनको घृणा की दृष्टि से देखता है।मन जाता है ये किसी को दिया दे तो भी लगती है और बद्दुआ दे तो भी लग जाती है ।
इनको समाज में इज्जत नहीं मिलती ।
आखिर क्या कारण की ये समाज में साधारण जिंदगी नहीं जी सकते हैं।
जब ये मर जाते है तो इनको रात के अंधेरे में चप्पलों से मारा जाता है खूब मातम करते है और खूब गालियां बकते है, चिल्लाते है।
ये धारणा हैं कि यह मानते है ऐसा करने से इनको मुक्ति मिले और अगले जनम में इस योनि में न जन्मे।
और अंतिम संस्कार तक मृत शरीर को
काला करके उन पर किन्नर समाज चप्पल जूतों से पीटता है ।
रात के अंधेरे में मृत शरीर घसीटते
हुए ले जाते है।
ऐसी पुष्टि की है ये क्रिया होने के बाद ही अंतिम यात्रा धर्म के मुताबिक उनका अंतिम संस्कार होता है ।
जिस धर्म संप्रदाय से वो निकला या जन्मा हो और फिर मृत शव को जलाया जाता है।
मौलिक अप्रकाशित स्वरचित
*डॉ संजीदा खानम शाहीन*