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अंतर्मन की चिट्ठी प्यारीं माँ – ऋतु ऊषा राय

 

तेरे गए हुए माँ आज नौ बरस हो चुके, नौ साल कम नहीं होते, ऊषा विन ये ऋतु इतनी झंझावते कैसे सहती है क्या देखकर तेरा मन नहीं पिघलता , फोन तो मिला नहीं सकती तो सोचा एक चिठ्ठी ही लिखूं तुझे, शायद कुछ बाते करके तुझसे इस मन को सकून मिल जाय। माँ देखती तो तुम सब ही होगी, जहां भी होगी, तेरे नाती नातिन पोते सब कितने बड़े हो गए है , काश तू होती तो और सुख अनुभव करती मगर तुझे पापा को ईश्वर ने पता नहीं क्यों इतना जल्दी बुला लिया। हमारे सारे शौक सारे सपने विन आपके अधूरे है मै तो सच मां तुझसे बिछड़ने बाद आज तक खुलकर कभी हँस ना पाई , तेरी स्मृतियों में सदैव खोई रही । तेरे वो नेक विचार सदैव परोपकार की भावना, जब तक कुछ बनाकर मुहल्ले भर को ना खिला लो , पेट ही कहा भरता था तेरा, सबसे बड़की भाभी होने का गौरव जो प्राप्त था तुझे , बड़के घराने की बड़की बहू थी इसी नाम से सब संबोधन करते थे है ना माँ अपने विचारों को मां तूने मेरे दामन में डाला तो है बड़ा त्याग था तुझमें , पर मै तो जग की दशा देख टूट जाती हूँ मां ,ऐसा नहीं कि तू क्रोधी नहीं थी, लेकिन बेवजह तो कभी किसी का तूने दिल नहीं दुखाया, फिर समझ नहीं आता , ये ऊपर वाला तेरे हिस्से इतना दुःख क्यों लिख दिया, जो बीमारी ने कमजोर करके तुझको हमसे छीन लिया ,इतना पूजा पाठ सबका आदर सम्मान, अतिथि देवों की भावना, यही कहती थी न दूसरों को सब बाटकर, की अपने खाने से क्या होता है सबका पेट भरा है तो अपना स्वयं भर जाता है। माँ तू महान व्यक्तित्व थी मै ये नहीं कहती कि दुनियां की सबसे अच्छी माँ मेरी मां है पर तुझसे अच्छी माँ सचमुच नहीं देखी,कभी तुझे सूर्योदय के बाद उठते नहीं देखा, जब तक हम सोकर उठे तू नहा कर साड़ी में पिन लगाकर फीट हो जाती थी, और कहती थी कि नीतू कभी देर से उठे सोकर तो लज्जित लगती है उसे अच्छा नहीं लगता, माँ यहाँ तो अपने घर जिलेबियां नहीं बन पा रही , तू पड़ोसियों के घर भी नमकीन और जलेबी बना आती थी। तुझसा मैंने इंसान नहीं देखा अगर किसी बात पर रूठी रहती जो तुझे खरी खोटी सुनता , उसके लिए धूप में जाकर जूस और फल ले आती की व्रत है तो खा ले , मुझे पता है ईश्वर ने तुझे क्यों जल्दी बुला लिया, उनको भी तू बहुत अच्छी लगती थी ।
मेरी बातें खत्म नहीं होगी, ये चिट्ठी बड़ी लंबी हो जाएगी, तेरी अच्छाइयां मेरे हृदय के हर कोने में बसी है जैसा तू कहती थी कि स्वयं की बड़ाई नहीं करनी चाहिए , दूसरे करे तो अच्छा लगता है
तेरी पुरानी कहावत मां
अपने मुंह से अपनी करनी,बार अनेक भांति बहु बरनी। इस चिट्ठी को आप सब पढ़िएगा और माँ लिए जो छटपटाहट है अंतर्मन में महसूस कीजियेगा , नहीं मिलते माँ बाप दुबारा इसलिए जीवित रहते हो उनकी सेवा कीजिए, उनके साथ समय बिताइए , घूमिए, फिरिए
मंदिर पूजा पाठ करिए , रामायण सुंदरकांड सुनाइए, क्योंकि माँ
नहीं आती दुबारा।

आपकी लाडली
ऋतु ऊषा राय
आजमगढ़

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