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बंद हो मुठ्ठी तो लाख की खुल गई तो फिर खाक की। (संवाद लेखन) — सुरेश चंद्र जोशी,

 

एच आर- रमेश तुम्हारे प्रमाणपत्र को देख सब बहुत सन्तुष्ट हैं, किन्तु हमारे संगठन का नियम है कि हम नियुक्ति से पूर्व दो घंटे की लिखित परीक्षा लेते हैं। लिखित परीक्षा में सफल उम्मीदवार का ही साक्षात्कार होता है।
रमेश- जी, लेकिन लिखित परीक्षा कब होगी।
एच आर- बस 1 बजे अपराह्न से।
रमेश- वह कहाँ होगी,तथा उसमें किस विषय पर प्रश्न पूछे जाएंगे।
एच आर- आपके अतिरिक्त 5 और उम्मीदवार हैं। सभी आ चुके हैं और सेमीनार कक्ष में बैठे हैं। बस तुम्हारे आने की प्रतीक्षा थी। प्रश्न आपने इंटरमीडिएट में जिन विषयों का अध्ययन किया है उससे ही होंगे।
रमेश- कुछ परेशान होते हुए “अच्छा”।
एच आर- कुछ परेशानी है क्या, आप घबराए से लग रहे हैं!
रमेश- नहीं सर।
एच आर- आप सेमिनार कक्ष में पहुँचिये।
रमेश- जी।
परीक्षा के एक घण्टे के बाद
एच आर- दिनेश, सुरेश, योगेश, महेश व रोहित आप लोग लिखित परीक्षा में सफल हैं। पाँच बजे से साक्षात्कार प्रारम्भ होगा। आप लोग कैंटीन से चाय आदि लेकर निश्चित समय पर पुनः सेमिनार कक्ष पहुँच जाएं। रमेश आप सफल नहीं हो पाए।
रमेश- नहीं सर, ऐसा कैसे हो सकता है।
एच आर- यही तो हम भी सोच रहे हैं। आपका प्रदर्शन आपके प्रमाण पत्रों से बिल्कुल भी मेल नहीं खाता। आपकी लिखित परीक्षा से तो यह आभास होता है कि आपको अपने विषय का बिल्कुल भी ज्ञान नहीं है। आपके ऊपर तो “बन्द हो मुठ्ठी तो लाख की खुल गई तो फिर खाक की” कहावत पूर्णतः चरितार्थ होती है।

सुरेशचन्द्र जोशी, उत्तराखंड, पिथौरागढ़।

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