कहानी – मेरी गुरूदक्षिणा– कार्तिक नितिन शर्मा

मैं, अर्जुन, एक गरीब किसान का बेटा था। मेरे पिता की मृत्यु हो गई थी और मैं अपनी माँ के साथ गाँव में रहता था। हम गरीबी में जीवन बिता रहे थे, लेकिन मेरी माँ ने मुझे हमेशा पढ़ाया और मुझे एक अच्छा इंसान बनाया।
मैं पढ़ाई में बहुत अच्छा था, लेकिन मेरे पास आगे की पढ़ाई के लिए पैसे नहीं थे। मैंने अपनी माँ से बात की और उसे बताया कि मैं आगे पढ़ना चाहता हूँ। मेरी माँ ने मुझे प्रोत्साहित किया और कहा कि मैं कड़ी मेहनत करूँ और सफलता प्राप्त करूँ।
मैंने कड़ी मेहनत की और गाँव के स्कूल में सबसे अच्छे छात्रों में से एक बन गया। मेरे शिक्षक ने मुझे शहर के एक अच्छे कॉलेज में दाखिला लेने के लिए कहा। मैं बहुत खुश था, लेकिन मुझे पता था कि मेरे पास कॉलेज की फीस भरने के लिए पैसे नहीं हैं।
मैंने अपने गाँव के एक साधु से बात की। साधु ने मुझे बताया कि वह मुझे कॉलेज की फीस भरने में मदद कर सकते हैं, लेकिन मुझे उन्हें गुरूदक्षिणा देनी होगी। मैंने साधु से पूछा कि गुरूदक्षिणा क्या है। साधु ने कहा कि गुरूदक्षिणा वह ज्ञान है जो उन्होंने मुझे दिया है। उन्होंने कहा कि मुझे अपने ज्ञान का उपयोग दूसरों की मदद करने के लिए करना होगा।
मैंने साधु की बात मान ली और उनसे ज्ञान प्राप्त किया। मैंने कॉलेज में दाखिला लिया और कड़ी मेहनत की। मैंने अपनी पढ़ाई पूरी की और एक सफल इंजीनियर बन गया।
मैंने अपने ज्ञान का उपयोग दूसरों की मदद करने के लिए किया। मैंने गाँव में एक स्कूल खोला और गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा दी। मैंने गाँव में एक अस्पताल खोला और गरीब लोगों को मुफ्त चिकित्सा सेवा प्रदान की।
मैंने साधु को अपनी गुरूदक्षिणा दी। मैंने उन्हें बताया कि मैंने उनके ज्ञान का उपयोग दूसरों की मदद करने के लिए किया है। साधु बहुत खुश थे। उन्होंने कहा कि यह उनकी सबसे बड़ी गुरूदक्षिणा थी।
यह कहानी हमें सिखाती है कि ज्ञान सबसे बड़ी दौलत है। हमें अपने ज्ञान का उपयोग दूसरों की मदद करने के लिए करना चाहिए।
कार्तिक नितिन शर्मा