लघु कथा: विश्वासघात — पालजीभाई राठोड़ ‘प्रेम’

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विश्वासघात महा पाप है। विश्वास एक शीशे की तरह होता है।ऐक बार टूट जाए फिर जूड नही सकता।विश्वास घात कभी भरोंसा नहीं तोड़ता आत्मा को भी घायल कर देता है। विष से आघात से गहरा होता है विश्वासघात। मनुष्य के जन्म से मृत्यु तक वह सुख दुःख छल कपट ईर्ष्या विश्वासघात जैसे कई नश्तर अपने सीने में छुपाये सब कुछ सहन करता रहता है।यह विश्वास घात कभी अपनों से कभी गैरों से अक्सर मिलता रहता है। विश्वास कर कभी भाई से अभी रिश्तेदारों से कभी मित्रों से मिलता रहता है।इसका कोई निश्चित कारण नहीं।जब विश्वास घात होता है तब बहुत दुःख होता है।
मेरी लघु कथा में भरोसा विश्वास घात तोडा नहीं बल्कि रिश्ते को बचाया।
भाविक और भैरवी एक दूसरे को चाहते थे।भैरवी उसके माता पिता को ये बात बता न सकी। उसका संबंध भावेश के साथ तय करने की बात चल रही थी। भैरवी मन ही मन दुःखी हो रही थी।भावेश ने कई बार भैरवी को भाविक के साथ मिलते झूलते बातें करते देखा था।भावेशने सोचा;
‘भैरवी और भाविक एक दूसरे को को पसंद करते हैं।एक दूसरे को प्रेम करते हैं।तो मेरे साथ भैरवी खुश नहीं रह सकती मुझे भैरवी से बात करनी पड़ेगी।’
एक बार भावेश ने भैरवी से पूछा;’हम दोनों के संबंध की बात हो रही है तुझे पता तो होगा। मैं जानना चाहता हूं कि तुम इस रिश्ते से खुश तो है न?’ भैरवी ने कुछ ना कहा।भावेश समझ गया। उसकी आंखें सब कुछ बता गई थी।मन ही मन सोचने लगा मुझे पता है भैरवी तुम भाविक को चाहती हो। मगर मैं ऐसा खुदगर्ज नहीं हूं।
भावेश ने कहा; ‘मे तेरी चाहत का भरोसा तोड़ना नहीं चाहता।तेरा विश्वासघात मैं नहीं करूंगा।बा बापूजी को मैं समझा लूंगा।भैरवी बहुत खुश हुई।मन ही भावेश का आभार मानने लगी।
“दोस्त वो ही है जो खामोशियां को पढ़ सके,
दोस्त वही जो उदासीयां को पढ़ सके;
यूं तो हज़ार लोग अपना होने का दावा करते हैं,
दोस्त वही जो अपनों खातिर जमाने से लड़ सके।”
श्री पालजीभाई राठोड़ ‘प्रेम’
सुरेंद्रनगर गुजरात