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मेरी मां -संस्मरण — मीरा कनौजिया काव्यांशी

 

मेरी प्यारी मां मुझे आज भी याद है मैं अपने घर में सबसे बड़ी और मेरे छोटे-छोटे भाई-बहन। हम चार बहने और मेरे तीन भाई।
सभी भाई बहनों में प्रगाढ प्रेम था । बहुत छोटे-छोटे थे थोड़ा-थोड़ा उम्र का फर्क था सभीमें। हमने होश संभाला और तो छोटे छोटे भाई बहनों को गोद में लेकर घूमाने लेकर जाती। फिर मेरी मां खाना बनाती थी। हमारे पिताजी थे रेलवे में सरकारी नौकरी पर थे। शाम को खाना बनता है रात को खाना खाकर के हम सब भाई-बहन सो जाते थे।
सुबह उठकर हम सबसे बड़े थे ,स्कूल जाते थे जब होश संभाला तो खाना बनाकर, स्कूल जाते थे।
मेरी मां की छोटे में ही शादी हो गई थी कम उम्र की थी उसे समय हो जाती थी,
धीरे-धीरे समय व्यतीत हुआ सबसे पहले मेरी शादी हुई,उसके बाद मेरी बहनों की भाइयों की सब की शादी हमारे माता-पिता ने कर दी।
पिता नौकरी से सेवानिवृत हो गए ,अचानक हमारे पिताजी के पेट में दर्द होता था कभी-कभी तो दिखाने गए तो पता लगा कि पेट में गांठे हो गई है, उसकी जांच कराई तो पता लगा वह गांठ कैंसर की थी और पूरे पेट में फैल गई थी।
हमने कानपुर लाकर के अपने पिता का ऑपरेशन कराया कामयाब हुआ ऑपरेशन, लेकिन कैंसर तो कैंसर वह कहां रुकने वाला एक साल ऑपरेशन के बाद जीवित रहे, बेचारे हमारे पिताजी दिवंगत हो गए। हम सभी पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा।

हम सब बच्चों की शादी हो गई थी । मां हमारे बुढ़ापे में वैधव्य को प्राप्त हो गई दुख का पहाड़ टूट पड़ा।
मां को लाकर के हमने रख लिया कानपुर में अपने पास कि उनका मन लगे। हमको अच्छा भी लगता था उनको भी। मैं स्कूल जाती तो वह घर में रहती थी और कामवाली से बातें करती रहती थी। हमारे पास कुछ दिन रही, लेकिन फिर वह अपने बेटों के पास झांसी चलीगई।
उनके तीन बेटे,तीनों आपस में कौन रखे मां को जबकि मां को पेंशन मिलती थी।
पेंशन रख लेते थे बड़े भाई ने रखा भाई तो मन से प्यार करता था लेकिन माता फिर भी रोती रहती थी पिता के लिए।
ठीक से उनका ध्यान भी रखने वाला कोई नहीं था वहां पर।
फिर इनको मझले भाई ने अपने पास रखलिया।
सभी ध्यान रखते थे उनका लेकिन माता हमेशा रोती रहती । क्योंकि उनके पैरों में अब दर्द भी होता था चल नहीं पाती ।
हम सभी बहने उनको देख आते थे पैरों में उनके दवाई लगाते हैं उनके बाल झाड़ते और उनको घूमा कर लाते।
कभी-कभी अपनी मां को जाकर मायके देख आते हम लोगों के जाने से खुश हो जाती थी लौटने पर वह मन उदास हो जाती ।
बच्चों के जाने पर खुश तो हो जाती है हम सब लड़कियां मिलकर के मां के पास जाते हैं।
लेकिन माता की अब तबीयत ठीक नहीं रहती है।

बुढ़ापे में कभी भी ईश्वर पति-पत्नी को अलग ना करें क्योंकि यह स्थिति बड़ी ही वेदना ग्रस्त होती है पीड़ा होती है और उनका दुख समझने वाला कोई नहीं होता है।
हम उनको कभी-कभी ढोलक पर गाना सुना देते हैं तो खुश हो जाती है। मां ममता का सागर होती है।
वृद्धावस्था में सभी बच्चों को अपने माता-पिता की सेवा करनी चाहिए उनका ध्यान रखना चाहिए। क्योंकि वृद्धावस्था सभी पर आती है।
प्रिय समस्त बुज़ुर्ग माता-पिता को सादर प्रणाम है।
सभी माताएं ममता की खान होती है बच्चों पर वात्सल्य लुटाती, किस प्रकार से पालन पोषण करती हैं। हम सबको भी ठीक बुढ़ापे में उनका भी उसी प्रकार से ध्यान रखना चाहिए ।

संसार की सभी माता को नमन करते हैं माता से बड़ा कोई नहीं, माता को ईश्वर भी नमन करते है,क्योंकि माता ने ईश्वर को भी जन्म दिया है।- डॉ मीरा कनौजियाकाव्यांशी

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