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मन की कसक — कमलेंद्र दाहमा

 

यह कहानी मेरे जीवन की सत्य धटना पर पूर्ण रूप से अधारित है |

मेरा जीवन खुशियों से भर गया जब मेरा विवाह एक सुशील, सुंदर, धैर्यवान और आशावादी महिला से हुआ | धीरे-धीरे जिंदगी का सफर उम्मीद और खुशियों से भर गया | कुछ दिनों पश्चात एक सुंदर बेटे का हमारे परिवार में आगमन हुआ | परिवार में सभी बहुत प्रसन्न थे | हमारी शादी को 5 साल हो चुके थे और हमारा बेटा उस वक्त 4 साल का था | तब हमारे जीवन में अचानक एक तूफान आ गया | मेरे सारे शरीर को लकवा मार गया |हमारी सारी उम्मीद और खुशियां परिवार की आसमान से धरती पर आकर मिट्टी में मिल गईं | मेरी सीए की पढ़ाई 3 साल ट्रेनिंग करने के बाद आधी अधूरी रह गई | सीए बनने की कसक मेरे मन में ही रहेगी |

हमने आगरा में एक ऑर्थोपेडिक्स डॉक्टर पचौरी से कंसल्ट किया | उन्होंने एक महीने मेरा इलाज किया और देखरेख में आगरा रखा | लेकिन मेरे शरीर में कोई फायदा नहीं हुआ, स्थिति और बिगड़ गई | तब डॉक्टर साहब ने मुझे ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट दिल्ली के लिए रेफर किया | मुझे याद है वह 31 दिसंबर का दिन था, सभी न्यू ईयर का जश्न मना रहे थे और मैं एम्बुलेंस से उस वक्त आगरा से दिल्ली जा रहा था | सभी के लिए बहुत कष्टप्रद और मानसिक तनाव का समय था | उस वक्त अलीगढ़ और आगरा में एमआरई नहीं हुआ करते थे | इसलिए मुझे दीवानचंद एमआरई सेंटर,कनॉट प्लेस, न्यू दिल्ली जाना पड़ा | वहां टेस्ट होने के बाद हमें मालूम पड़ा कि मुझे रीड की हड्डी का कैंसर है | कैंसर की वजह से मेरी स्पाइनल कॉर्ड C 7, T1, T2 पूरी तरह से डैमेज हो गई थी |यह बात मुझे और मेरी पत्नी के अलावा सबको पता थी |

मैं बहुत भाग्यशाली था, कि मुझे 3 जनवरी को ही ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट, दिल्ली में एडमिशन मिल गया, जहां 6 महीने तक लोगों को अपॉइंटमेंट नहीं मिलता | यह इस वजह से हुआ क्योंकि आगरा के डॉक्टर ने एक व्यक्तिगत लेटर हड्डी विभाग के अध्यक्ष को लिखा था, जो कि उनसे परिचित थे | इसी वजह से शायद मुझे जल्दी एडमिशन मिल गया | मैं उनको आज भी याद करता हूं और हृदय से आभारी हूं |अगर उन्होंने व्यक्तिगत पत्र ना लिखा होता, तो मुझे समय पर उचित और सही इलाज नहीं मिलता | 19 जनवरी को नए साल में मेरा रीड की हड्डी का मेजर ऑपरेशन हुआ | जिन डॉक्टर ने मेरा ऑपरेशन किया वह हड्डी विभाग के हेड और इंस्टिट्यूट के डायरेक्टर थे, डॉक्टर पीके दवे | ईश्वर की अनुकंपा से मेरा ऑपरेशन सफल हो गया और मेरे ऑपरेशन में 8 घंटे लगे | मुझे दो दिन बाद होश आया |

मुझे 4 साल लगे दोबारा से अपने पैरों में खड़े होने में ऑपरेशन के बाद | मेरी धर्मपत्नी ने मुझे उंगली पड़कर मां की तरह दोबारा चलना सिखाया | ईश्वर की कृपा और बुजुर्गों के आशीर्वाद से मैं पूर्ण रूप से स्वस्थ हो गया | डॉक्टर ने मुझे वजन उठाने, टू व्हीलर और फोर व्हीलर चलाने के लिए मना किया | इस दौरान मैंने कभी भी ईश्वर को दोषी नहीं ठहरा है और हमेशा आशावादी रहा और सोचता था कि मैं एक दिन जरूर पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जाऊंगा | यकीनन इसमें मेरी धर्मपत्नी, परिवार और मित्रों का बहुत बड़ा सहयोग और योगदान था | उन सभी का मैं हमेशा जीवन में हृदय से कृतक रहूंगा | मेरी धर्मपत्नी का ईश्वर के प्रति विश्वास, सेवा भाव और मेरे प्रति अटूट प्रेम सावित्री देवी से कम नहीं है, तभी मैं मौत से अपने जीवन में जीत पाया |
यह कहानी मेरी आदरणीय शब्द सिंधु मंच द्वारा प्रकाशित पुस्तक, मन की कसक में प्रकाशित है |

कमलेंद्र दाहमा
अलीगढ़, उत्तर प्रदेश

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