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नटराज – ब्रह्मांडीय नर्तक शिव का दिव्य स्वरूप — मंजू शर्मा “मनस्विनी”

नटराज – ब्रह्मांडीय नर्तक शिव का दिव्य स्वरूप — मंजू शर्मा “मनस्विनी”

नटराज – ब्रह्मांडीय नर्तक शिव का दिव्य स्वरूप

नटराज-नट मतलब “कला”और राज (राजा) नृतकों के देवता, जिन्हें कलाओं का आधार कहा गया है वे हैं भगवान “शिव” ।
नटराज के इस स्वरूप में कला का एक अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है। जो एक अलग ही अनुभूति कराता है ।
नटराज की मूर्ति अक्सर मंदिरों और घरों में देखी जाती है। यह शिव की शक्ति, ज्ञान और कला के प्रतीक के रूप में जानी जाती है।

नटराज केवल आकर्षक और प्रर्दशन की मूर्ति नहीं है। वह सैकड़ों वर्षों से कलाकारों के लिए प्रेरणा स्रोत रहे हैं। मूर्तियों और चित्रों से लेकर आकर्षक कहानियां तक, नटराज की छवि भारतीय कला में समाहित हो चुकी है।
नटराज की मूर्ति में शिव को चार भुजाओं के साथ नृत्य करते दिखाया गया है। एक हाथ में डमरू है — जो सृजन का प्रतीक है, और दूसरे में अग्नि — जो विनाश और पुनर्जन्म का संकेत देती है। एक हाथ अभय मुद्रा में है, जो भय से मुक्ति का प्रतीक है,और एक हाथ नीचे की ओर झुका हुआ है,जो संरक्षण दर्शाता है।

नटराज के चारों ओर बना वृत्त केवल एक सजावटी तत्व नहीं, वह ब्रह्मांड का प्रतीक है। ब्रह्मांड, अपने मूल में, एक लयबद्ध ऊर्जा-नृत्य है — और नटराज इसी गहन सच्चाई का भौतिक रूप हैं। नटराज के दाहिने पैर के नीचे दबा अपस्मार पुरुष,
अविधा और अज्ञान का प्रतीक है। राक्षस अपस्मार का दबना यह दर्शाता है कि भगवान शिव की शक्ति और ज्ञान के सामने अज्ञान पराजित हो जाता है।
इस प्रकार राक्षस का दबाना केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि जीवन में उत्साह, उर्जा का मार्गदर्शन भी करता है।

नटराज का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व

चिदंबरम

नटराज का प्रसिद्ध मंदिर मुख्य रूप से तमिलनाडु के चिदंबरम में स्थित हैं। इसके अलावा, भारत के अन्य हिस्सों में भी नटराज की मूर्तियाँ और मंदिर मौजूद हैं, जैसे कि उज्जैन में एक लाल बलुआ पत्थर की नटराज मूर्ति है और सतारा में भी नटराज मंदिर बताया गया है।
चिदंबरम का नटराज मंदिर,जिसे थिल्लई नटराज मंदिर भी कहा जाता है, तमिलनाडु के कुड्डालोर जिले में स्थित है।
यह मंदिर भगवान शिव के नटराज रूप को समर्पित है और इसे दक्षिण भारत के सबसे भव्य मंदिरों में से एक माना जाता है।
यह मंदिर शिव के पाँच तत्वों में से ‘आकाश तत्व’ का प्रतीक माना जाता है। बाकी चार तत्वों के प्रतिनिधि मंदिर हैं।

वायु- कालाहस्ती (आंध्र प्रदेश)
पृथ्वी-कांचीपुरम
जल -तिरुवनिका
अग्नि -अरुणाचलेश्वर (तिरुवन्नामलाई)

चिदंबरम मंदिर लगभग 40 एकड़ क्षेत्र में फैला है और यह पृथ्वी की चुंबकीय भूमध्य रेखा पर स्थित है।
मान्यता है कि कैलाशपति ने इस पवित्र स्थान को अपनी सभी शक्तियों से उपकृत किया है, जिनका सृजन भी उन्होंने यहीं किया। पुराणों के मुताबिक भगवान शिव यहाँ प्रणव मंत्र ‘ॐ’ के आकार में विराजमान हैं। यही वजह है कि आराधक इसे सबसे अहम मानते हैं। चिदंबरम भगवान शिव के पाँच क्षेत्रों में से एक है। इसे शिव का आकाश क्षेत्र कहा जाता है।

नटराज- कला और चेतना का संगम है।

भारत ही ऐसा देश है जहाँ ईश्वर को नृत्य करता हुआ दिखाया गया है। नटराज हमें यह सिखाते हैं कि नृत्य केवल अंगों की गति नहीं, बल्कि आत्मा की भाषा है। यह एक साधना है जिसमें शरीर, मन और आत्मा की लय समाहित होती है।

नटराज का नृत्य, जीवन के निरंतर परिवर्तन और ब्रह्मांड की लयबद्धता का प्रतीक है। जीवन में सब कुछ गतिशील है और परिवर्तन ही एकमात्र स्थिरांक है। भगवान “शिव” पर विश्वास करके भक्त मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। यह भी माना जाता है कि नटराज का नृत्य, ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रतीक है और यह हमें अपनी आंतरिक ऊर्जा को जगाने और ब्रह्मांड के साथ जुड़ने के लिए प्रेरित करता है।

मंजू शर्मा “मनस्विनी”
कार्यकारी संपादक

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