रिश्तों_में_मर्यादा — राजेन्द्र परिहार”सैनिक “

राम नारायण शर्मा मूलतः गांव के रहने वाले थे और ग्रामीण परिवेश में ही पले बढ़े थे। किन्हीं कारणों वश वो गांव को छोड़ कर शहर में आ गए। कपड़े की छोटी सी दुकान लगाकर किराए के मकान में रहते थे। पत्नी सरोज एक धर्म परायण और पुराने ख़्यालों की स्त्री थी। एक बेटा संदीप बचपन से ही संस्कारित परिवार में पला बढ़ा लड़का था। संदीप पढ़ाई में बहुत ही मेधावी छात्र था। समय के साथ ही राम नारायण जी अपनी लग्न और मेहनत से बड़े शोरूम के मालिक बन चुके थे। पुत्र संदीप अपनी पढ़ाई पूरी करके अच्छे पद पर नियुक्त हो चुका था। विवाह हो चुका था और उसकी पत्नी संध्या एक पढ़ी लिखी और समझदार पत्नी साबित हुई थी। परिवार में पीढ़ियों से घूंघट प्रथा चली आ रही थी किन्तु संध्या को घूंघट में रहने और काम करने में परेशानी महसूस होती थी। उसने पति संदीप से इस विषय में बात की तो संदीप ने कहा कि भई पारंपरिक रीत चली आ रही है, मैं कैसे खिलाफ़त करूं। संध्या ने सास से भी बात करना उचित नहीं समझा। एक दिन मौका
देखकर ससुर जी हिम्मत कर बात की “पापा मैं आपकी बेटी जैसी हूं और आप मेरे पिता समान हैं। मैं एक आधुनिक परिवेश से संबंध रखती हूं क्या आप मुझे बेटी मानकर घूंघट से मुक्त कर सकते हैं?
रामनारायण जी ने कुछ विचार किया और लंबी सांस लेकर बोले “बेटी! मैंने हमेशा तुझे बहु कम,, बेटी ही माना है और आज से तुझे घूंघट के बंधन से मुक्त करता हूं लेकिन कभी #रिश्तों_की_मर्यादा का उल्लंघन मत करना। औरत की शर्मआंखों में होती है इस शर्म की मर्यादा बनाए रखना। संध्या कीआंखों में ख़ुशी के आंसू निकल पड़े, ससुर के चरण छूकर भर्राए गले से इतना ही बोली “पापा मैं कभी अपनी मर्यादा नहीं भूलूंगी। ससुर की आंखों में भी स्नेह भरे आंसू निकल पड़े।
राजेन्द्र परिहार”सैनिक “