वर्तमान सामाजिक परिवेश — अलका गर्ग, गुरुग्राम

वर्तमान सामाजिक परिवेश के बारे में क्या लिखें…कहाँ से आरंभ किया जाये ये भी एक बहुत बड़ी दुविधा है।आज सामाजिक परिवेश के सारे समीकरण बदल चुके हैं।विगत कुछ वर्षों में हरेक क्षेत्र में विद्युत गति से बदलाव देखने को मिल रहे हैं।वेश-भूषा,खान पान,
रहन-सहन शिक्षा प्रणाली,कार्य प्रणाली,देशाटन ,यात्रा,त्यौहार
पर्व…हरेक क्षेत्र में विकास तो हुआ है ,और साथ साथ बहुत बदलाव भी हुआ है।
वेश-भूषा पर पाश्चात्य संस्कृति का ज़्यादा असर नज़र आने लगा है।विदेशी ख़ान पान भी नई युवा पीढ़ी को बहुत भाता है।पिज़्ज़ा,बर्गर,पास्ता,मोमोज़ आज हरेक प्रांत में बड़े शौक़ से खाये जाते हैं।साथ ही देशी और प्रांतीय खाने भी नई नई विधियों और स्वाद के साथ बहुत पसंद आ रहे हैं।कुल मिला कर वर्तमान सामाजिक परिवेश में बाहर खाने-पीने का प्रचलन काफ़ी बढ़ गया है।
नब्बे और सौ के दशक की तुलना में आजकल समाज में एकल परिवारों का चलन कुछ कम हुआ है ।संयुक्त परिवार प्रथा कुछ हद तक बढ़ी हैं।इसका सबसे बड़ा एकमात्र कारण
पत्नी का कामकाजी होना है।नौकरी या व्यवसाय करने के कारण औरत घर और बच्चों की देख रेख नहीं कर पाती।और महानगर तो क्या आजकल किसी भी नगर में किसी एक की कमाई से उनकी इच्छानुसार घर नहीं चल पाता है ।पैसा खर्च कर बच्चों की देखभाल के लिए नौकर,टीचर,ट्रेनर तो आ जाते हैं परंतु बच्चों को उनके साथ अकेले छोड़ना सुरक्षित नहीं।तो नानी-नाना ,दादी-दादा या भाई-भाई फिर से साथ रहना पसंद करने लगे हैं। पिछले बीस तीस सालों में ये एक सुखद बदलाव समाज में देखने को मिला।ज़रूरतमंद युवाओं ने बुजुर्गों को मान दिया और बुजुर्गों ने भी अपना नज़रिया बदल कर संतुलन बनाया।
आज के परिवेश शिक्षा प्रणाली बहुत विकसित हुई है।नये विषयों ,गतिविधियों के साथ साथ खेल,कंप्यूटर,विभिन्न भाषाओं का ज्ञान,विज्ञान,गणित,सांख्यिकी सब कुछ स्कूलों में सिखाया पढ़ाया जाता है और इसके बड़े ही अच्छे परिणाम भी निकल कर आते है।बच्चों का मानसिक और बौद्धिक विकास हुआ है।
परंतु इसका एक अफ़सोसजनक पहलू यह भी है कि शिक्षा एक व्यवसाय बन कर रह गई है।बड़ी कंपनी की तरह स्कूल खोल लिए गये हैं।मनचाही फ़ीस,जो कि लाखों में होती है, वसूल की जाती है।सप्ताह में तीन यूनिफार्म,ग़ैरज़रूरी समान,क्रियाकलाप,भ्रमण के नाम से हज़ारों रुपये, अलग से लिये जाते हैं।आम आदमी को प्राइवेट स्कूल सपना लगता है और सरकारी स्कूलों में शिक्षक,पानी,टॉयलेट और बैठने की समुचित व्यस्था न होने के कारण बच्चों को भेजना नहीं चाहता।तो आज के सामाजिक परिवेश में शिक्षा प्रणाली समाज के मध्य वर्गीय और निम्न वर्गीय,दो वर्गों के लिए बड़ी कश्मकश का विषय बनी हुई है।
कार्य प्रणाली में आज गुणवत्ता देखने को मिलती है।हर काम कंप्यूटर तकनीकी से होने के कारण रफ़्तार से और कम ग़लतियों के साथ हो रहा है।शिक्षा का महत्व तो पहले भी था और ज़रूरत आज और अधिक हो गई है।
घर बैठे हरेक वस्तु ऑनलाइन घर मँगाने से बाज़ारों की रौनक़ और बिक्री काफ़ी कम हुई है।
यात्रा,देशाटन का चलन भी आजकल बहुत बढ़ा हुआ है।पहले से अधिक सुविधाजनक भी हो गया है। घर से ही यात्रा,गाड़ी,होटल सबकी बुकिंग कराकर आज लोग घूमने जाते हैं।रेल,रास्तों हवाईजहाज़ की सुविधाओं में भी पहले की अपेक्षा काफ़ी सुधार हुआ है।
त्यौहारों पर एक दूसरे से मिलना,मिल कर त्यौहार मानना,
आपस में बात-चीत आज के परिवेश में काफ़ी कम हो गया है।व्यस्तता का नाम दे कर रीति रिवाज,भजन पूजन ,त्यौहार बस नाम भर को ही मनाया जाता है।इसके विपरीत त्यौहारों पर डी जे ,माइक पर घंटों नाचना,हुड़दंग करना,पार्टी करना,इवेंट मैनेजर से पूरे त्यौहार की रूप रेखा तैयार करवाना..इन सबका प्रचलन दिन पर दिन बढ़ता ही जा रहा है।
वर्तमान सामाजिक परिवेश में क्रोध,आक्रोश,हिंसा,असहिष्णुता बहुत अधिक देखने को मिलती है।शिक्षित होने के कारण अहंकार भी बढ़ा है ।अहम् सर्वोपरि का भाव अधिकतर लोगों में देखने को मिलता है।आज के परिवेश में अधिकतर लोगों ने अपने इर्द गिर्द कवच बना लिया है और वे उसी में घुसे रहना पसंद करते हैं।
हँसने,ठहाके लगाने के लिये भी लाफ्टर क्लब जाते हैं।ख़ैर बदलाव शाश्वत और निरंतर है।अगला पड़ाव बहुत सुखद होगा..इसी आशा के साथ।
अलका गर्ग, गुरुग्राम