व्यंग्य–मृत्यु से साक्षात्कार — अमर नाथ

आज सुबह ही सुबह अचानक दरवाजे की घंटी बजी।मैं गहरी नींद से हड़बड़ा कर उठ बैठा।इतनी सुबह, कौन कमबख़्त आन मरा? यह बुड़बुड़ाते हुए मैंने उठकर दरवाजा खोला।एक बदसूरत सी, चेचकी-सूरत, श्वेत-श्याम लम्बे बालों को फूँस की तरह छितराए हुए, एक प्रौढ़ा सामने खड़ी थी।मौत जैसा शान्त चेहरा।मैंने अचकचाते हुए पूछा, “कौन हैं आप? कैसे आना हुआ? मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ?”
वह बिना मुस्कराए हुए बोली, ” मैं मल्कुल -मौत हूँ। तुम्हें लेने आई हूँ।चलो, जल्दी से तैयार हो जाओ।”
” क्या मजाक है? मौत क्या इतनी बदसूरत होती है?साफ-साफ कहो कि क्या चाहती हो? कोई भयानक मुसीबत आ पड़ी है क्या आप पर,जो मुझे इतनी सुबह आकर जगा दिया?”
वह एकदम गंभीर होकर बोली, ” ऐ माटी के पुतले!ज्यादा ऊँट पे टाँग मत धर।10 मिनट की मोहलत देती हूँ, बस तैयार हो जा मेरे साथ चलने के लिए।”
“फिर मजाक! मैंने अभी पाखाना-पेशाब तक नहीं किया है। उनसे फारिग होकर दातुन-मंजन करनी है।फिर थोड़ा हल्का सा व्यायाम भी।उसके बाद ही नहाना हो सकेगा।ऐसा करिये आप, आराम से ड्राइंग रूम मे बैठिए।थोड़ा सुस्ता लीजिये ।इतनी दूर से आई हैं आप, थक गयी होंगी।नहाने के बाद हम दोनों मिलकर जलपान करेंगे। उसके बाद आप जहाँ कहोगी,चल दूँगा।”
वह लगभग चीखती हुयी सी बोली, “ऐ मानव! तू सठिया गया है क्या? तुझे डर नहीं लग रहा, मौत को सामने देखकर? मेरे पास इतना समय कहाँ है कि मैं तेरी यह बकवास सुनती रहूँ ? जा! जल्दी से मल-मूत्र से फारिग हो, वरना जब मैं तेरे प्राण खीचूँगी, तब तेरे जिस्म का सारा पाखाना-पेशाब बाहर आ जाएगा, और मुझे उस बदबूदार जिस्म को साथ ले जाते समय, पूरे रास्ते उस दुर्गन्ध को सहना पड़ेगा।चल, जल्दी कर।”
मैं उसे एक सपना समझते हुए, शौचालय में घुस गया।मन में अनेक सवाल, सागर की लहरों से तरंगित हो रहे थे। क्या वास्तव में मेरी मौत आ गयी? पत्नी तो पहले ही जा चुकी थी।बच्चे बाहर हैं।उनको सूचना दूँ या नहीं? वरना मेरे मरने के बाद वे भी अनाप-सनाप मुझे गालियाँ ही देंगे कि बुड्ढे ने मरते समय भी कुछ नहीं दिया और न कुछ बता गया कि उसके पास क्या है, और कहाँ है?
खैर!मैं शौचकर्म से निबटने के बाद हल्का सा नाश्ता और दो कप चाय बनाकर,मौत से उसे स्वीकार करने का अनुरोध करने लगा।उसने जैसे ही चाय का एक सिप लिया कि उसे थूकते हुए बोली,” क्या है ये? बहुत कड़वी है। हमारे यहाँ तो इसे कोई नही पीता।हम लोग तो सोमरस पीते हैं। वह नहीं है क्या आपके पास?”
मैने हीन-भावना से लजाते हुए कहा कि मइया! मैं सोमरस नहीं जानता। उसके लिए आज आपसे क्षमा चाहता हूँ ।अगली बार फिर कभी जब भी आप यहाँ आएँगी, तब मैं कोशिश करुँगा कि आपको सोमरस पेश कर सकूँ।”
खैर बात आयी-गयी हो गयी , और मैं उनसे पूछने लगा-
“आपको किसने भेजा है मेरे पास?”
” यमराज जी ने।”
” मेरे घर का पता किसने बताया आपको?”
” आपके आधार कार्ड को क्लोन किया था।”
“मेरा आधार कार्ड कहाँ से मिला आपको?”
“गूगल बाबा पर सब कुछ उपलब्ध है।”
” आपको कैसे पता कि मेरी जिन्दगी का आज आखिरी दिन है?”
“हर इन्सान की जिंदगी के वर्ष, महीने, दिन, घंटे, मिनट, सैकेण्ड तक निर्धारित होते हैं। हमारे स्वर्ग लोक के महालेखाकार भगवान चित्रगुप्त जी के खाते में सभी जीवों का विवरण दर्ज है।”
क्या आप मुझे ले जाने के लिए यमराज जी या किसी अन्य सक्षम अधिकारी का आदेशपत्र लेकर आयी हैं?कोई समन? कोई वारंट?
किसी सक्षम अधिकारी के लिखित आदेश के बिना, किसी को भी, उसके घर से उठाकर, ले जाना,अपहरण कहलाता है। यह तोआपको पता ही होगा? बुरा मत मानिएगा। आजकल ऐसे ठग बहुत घूम रहे हैं जो हर तरह के झूठ बोलने और मौत तक को दगा देने में माहिर होते हैं।कहीं आप कोई ठग तो नही हो? क्या आप अपना आइडैन्टिटी कार्ड दिखा सकती हो? यह मौत-वौत की फर्जी कहानी छोड़िये ।सच-सच बताइये कि क्या चाहती हैं आप मुझसे? अगर कुछ धन की तमन्ना है तो, खुद निकाल लीजिये इस बटुए से, चाहे जितना।मैं घर आए भिखारी को खाली हाथ वापस नहीं लौटाता। तिस पर आप तो, बकौल आपके, यमलोक से आई हो।”
इतना कहकर मैंने अपना बटुआ उसके सामने रख दिया।
वह एकदम तमतमाती हुई उठी और मेरे गाल पर चाँटा जड़ती हुयी बोली, “क्या बकवास लगा रखी है? बस एक मिनट बाकी है। जिसे फोन करना है, कर ले।”
मैं तो मौत से कभी डरा ही नहीं, फिर आज ही क्यों डरता? मैंने भी निडरता से कहा,”चलिए मैं तैयार हूँ ।मुझे किसी को भी फोन नहीं करना, वरना आपको यह भ्रम हो सकता है कि मैं पुलिस को बुला रहा हूँ ।आजकल सारे रिश्ते, केवल अपने सुख और स्वार्थ पर निर्भर हैं। मेरे मरने या जीने से, किसी को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला।अलबत्ता मेरे मरने का इंतज़ार जरूर करते हैं कि कब यह बुड्ढा मरे, और कब इसका बचा- खुचा माल हमें मिले ।
मैंने कुर्ता-पायजामा पहन कर फिर उनसे एक सवाल दागा, “अच्छा, मृत्यु देवी जी! एक बात बताओ।देखो, कैसी झमाझम बारिश हो रही है। पूरे शहर में बाढ़ आई हुई है ।सारे रास्ते बंद है।मोटर, रेल, जहाज आदि सारा आवागमन बंद है। ऐसे में आप मुझे लाद कर कैसे ले जाओगी? आप तो वैसे ही बूढ़ी और दुबली- पतली हो।मेरे साठ किलो के शरीर को लादकर चल सकोगी क्या? सोच लो अच्छी तरह, कहीं ऐसा न हो कि चलते-चलते जब कहीं थक जाओ तो मुझे कहीं बाढ़ के पानी में, या किसी गड्ढे में फेंककर चली जाओ? एक बात आपकी जानकारी में लाना मैं अपना धर्म समझ रहा हूँ । मैं हिन्दू हूँ और मेरे धर्मानुसार मेरी मृत्यु के बाद मेरे शरीर को जलाकर राख करना, आपका धर्म है, न कि, कहीं पर भी फेंक कर, किसी जीवजन्तु का भोजन बनने देना। इस पानी में डूबे शहर में, मेरे मृतक जिस्म को कैसे जला पाओगी?अच्छी तरह से सोच लीजिये ।अगर मेरे शरीर को आग में न जलाकर, कहीं सड़ने के लिए छोड़ दिया तो हमारे अनेक हिन्दू संगठन,एक हिन्दू-शरीर को किसी जीव का नान-वैज निवाला बना देने के लिए, आपके खिलाफ, आन्दोलन खड़ा कर देंगे। तब आप यमराज जी को क्या जवाब दोगी? एक हिन्दू की ल्हाश को जलाया क्यों नही?हिन्दुओं के सारे देवी-देवता भी हिन्दू ही हैं। वे भी सब आपसे नाराज हो जायेंगे ।तब आप क्या करेंगी?
मैं तैयार हूँ, खुशी-खुशी आपके साथ चलने के लिए।”
ऐसा कहकर मैं मृत्यु देवी की गोद में जा बैठा।
मृत्यु देवी अपने जूँ भरे बालों को खुजलाने लगी।।
अमर नाथ