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चाय की टपरी/संस्मरण — सुनीता तिवारी

 

हल्की हल्की बारिश हो रही थी घर में गैस खत्म हो गयी।
मैंने और राजेश ने छाता निकाला और चल दिये बोर्ड ऑफिस के सामने वाली टपरी पर चाय पीने के लिए।
नुक्कड़ पर दो पुराने दोस्त मिल गए,गणेश बोला चल यार फिर से आज टपरी के नीचे चाय पियें।
मुद्दतें हो गयी कबसे नहीं मिली थीं तुम।
आज तुम पर पेनाल्टी है साथ में गर्म समोसे भी खाएंगे तुमसे।
क्यों नहीं …
खाओ भाई पता नहीं आगे फिर कब मिलना हो।
अब हम ऐसे पीछा नहीं छोड़ने वाले तुम्हारा।
सप्ताह में एक बार जरूर मिलेंगे हम
लोग।
चाय पीते न जाने कितने दोस्तों की बातें निकली।
राजेश हम लोगों की बातें बड़े ध्यान से सुन रहे थे।
मंगेश न्यूज पेपर पर रखकर समोसे और तली हुई मिर्चे ले आया।
चटनी के संग समोसे खाकर हम तीनों कालेज की यादों में खो गए।
आज टपरी हम सबको गुड़ वाली चाय बहुत अच्छी लग रही थी।
याद आया कि कैसे राजेश ने टपरी में ही बैठकर लाइन मारना शुरू किया था और वह हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गए।
ये टपरी हमारे प्यार की साक्षी भी थी आज अदरक, लौंग की चाय के साथ फिर सब बातें ताजा हो गयी।
कितने बड़े रेस्टोरेंट में चले जाय पर चाय पीने का मजा या तो टपरी में आता या नुक्कड़ पर।

सुनीता तिवारी

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