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वर्तमान युग के साहित्य में प्रेमचंद की भूमिका — महेश तंवर

31जुलाई 1880 में जन्म लिए हिंदी साहित्य के पुरोधा,उपन्यास के सम्राट मुंशी प्रेमचंद की भूमिका वर्तमान युग के साहित्य में अत्यंत महत्वपूर्ण है। साम्राज्यवाद, पूंजीवाद और सामंतवाद के विरुद्ध अलख जगाने की प्रेरणा उनकी रचनाओं में मुखरित होती है। प्रेमचंद ने भारतीय समाज में व्याप्त विसंगतियों को अपने लेख के माध्यम से उजागर किया । उन्होंने किसान, मजदूर और महिलाओं की दुर्दशा को अपनी कलम का आधार बनाया। समाज के निम्न और मध्यम वर्ग के लोगों के साथ हुए दुर्व्यवहार को बखूबी से चित्रण किया।

“नमक का दरोगा” नामक कहानी के माध्यम से प्रशासनिक भ्रष्टाचार को उजागर करते हुए अपनी ईमानदारी से ‘धर्म ने धन को पैरों तले कुचल दिया’ के माध्यम से दुनिया को ईमान के लिए प्रेरित किया। ब्रिटिश सरकार से अपने स्वाभिमान को बचाने के लिए सरकारी नौकरी को त्याग दिया। और अपना नाम धनपत राय से बदलकर प्रेमचंद के नाम से कलम चलाना शुरु किया। उनकी कहानी और उपन्यास आज भी सामाजिक न्याय, समानता और मानवीय मूल्य पर खरी उतरती हैं ।उनके प्रमुख उपन्यास रंगभूमि, गोदान, पूस की रात, कर्बला, और कफ़न आदि के द्वारा समाज में व्याप्त पीड़ा को आंका है ।पंच परमेश्वर, नमक का दरोगा, ईदगाह और दो बैलों की कहानी आदि अनेक कहानी के माध्यम से दीन- हीन मजदूरों व कृषकों के व्याप्त दुःख -दर्द को जन-जन तक पहुंचाने का काम किया है।

अतः हम कह सकते हैं कि प्रेमचंद का साहित्य भारतीय समाज के लिए एक अनोखी धरोहर है । जिससे भारतीय समाज सदैव प्रेरित होता रहेगा ।

महेश तंवर सोहन पुरा
नीमकाथाना (राजस्थान)

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