गीता ज्ञान सार — शुचिता नेगी
आज हम इस परमाणु बम और मिसाइल( गीता में मूसल शब्द आया है) से सुसज्जित महाभारत लड़ाई में हुए महा विनाश की सीमा रेखा पर खड़े हुए हैं, इसके ठीक पहले स्वयं भगवान ने आकर गीता ज्ञान सुनाया था। गीता का महत्वपूर्ण वचन है- नष्टोमोहा स्मृतिलब्धा अर्थात संसार के सभीसंबंधों-पदार्थ आदि से मोह नष्ट करके अब सत स्वरूप की स्मृति (याद ) करो। कितनी विचित्र बात है कि जब तक सूक्ष्म चैतन्य ज्योति बिंदु आत्मा जड़ शरीर में विद्यमान है तब तक जीवन का मूल्य है और जिस क्षण यह सूक्ष्म आत्म ज्योति शरीर में से निकल जाती है तो शरीर निष्प्राण हो जाता है और उसे जलाने के बाद राख बचती है। जीवन का यह सबसे बड़ा सत्य हम भूल क्यों जाते हैं? इस लौकिक जगत की शिक्षा अध्ययन के दौरान महत्वपूर्ण बिंदुओं का बार-बार अभ्यास किया जाता है। बार-बार दोहराने से वह बिंदु याद हो जाते हैं। इसी प्रकार हमारे जीवन की सबसे बड़ी भूल यह हुई है कि मैं देह हूॅं, अमुक अमुक संबंधी पदार्थ आदि मेरे हैं, इस असत्य को बार-बार जन्म जन्मांतर हम दोहराते आए हैं तो हमारी स्मृति में यह असत्य जानकारी अच्छी तरह से पक्की हो गई है और हमें वही झूठी बात याद आती रहती है।
सृष्टि चक्र के अंतिम समय में हमें अपने सत्य स्वरूप की स्मृति भगवान शिव आकर के दिलाते हैं कि वास्तव में तुम मेरे बच्चे मेरी ही तरह सूक्ष्म प्रकाश मय ज्योति स्वरूप हो इस जड़ शरीर को चलाने वाली चैतन्य सत्ता हो।
अब इस भावी विनाश लीला के पहले इस जड़ तमो प्रधान हो चुकी दुनिया से ममत्व नष्ट करके अपने सत्य स्वरूप को याद करो तो अंत मति सो श्रेष्ठ गति को प्राप्त करेंगे।
शुचिता नेगी “शुचि”